फासलों और नज़दीकियों के बीच में,
उस चौराहे से थोड़ी दूर
एक घर है मेरा,
माँ की आवाज़ से जहां नींद टूटती है
और उसकी गोद मे जहाँ दिन भर की हर बेचैनी दम तोड़ती है,
वहां फूलों की खुशबू कुछ याद नहीं दिलाती,
दराजों में पड़ी किताबें वहां धूल नहीं फांकती
हर किताब का वहाँ अपना एक आशियाना है,
हर खत की अपनी एक किताब है,
वहां बिस्तर पे करवटें बदलते सोने की जरूरत नहीं होती,
वहाँ रातों को जागने में डर सीने में घर नहीं कर जाता।
फासलों और नज़दीकियों के बीच में,
उस चौराहे से थोड़ी दूर
एक घर है मेरा,
वहाँ आज़ान और आरती दोनों पे सिर झुकते हैं,
वहां माँ के सामने अंजान ख्याल बिन कुछ पूछे दम तोड़ते हैं।
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