UTPAL SINGH CHAUHAN   (UTP'ALFAZZ)
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Joined 27 October 2019


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Joined 27 October 2019
13 MAR 2022 AT 7:10

दोबारा इश्क़ करना भी बर्बाद होना है
मगर दिल चाहता है फिर यकीं करना
इसे भी शौक है खतरे उठाने का
यक़ीनन फिर तबाह होकर रहेगा

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10 OCT 2021 AT 12:22

अब रही न चाह मुझको जन्नत-ए-जमाल की
तेरा दीदार करना भी मजा उतना ही देता है

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9 OCT 2021 AT 21:51

सितम-ज़रीफ़ में क्यों पाकीज़गी का निशां नहीं दिखता
राह-ए-मुहब्बत में सिवाय ख़ार के गुलिस्तां नहीं दिखता
बहुत खूबसूरत है तिरा शहर, मगर इक ज़न्न है बाक़ी
तेरे तमाशबीन मजमे में क्यों कोई इंसां नहीं दिखता

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9 OCT 2021 AT 10:07

बेबसी पर चिल्ला रहीं खामोशियाँ मेरी
क्यों भूल जाने का हुनर सीखा नहीं मैंने

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2 JUN 2021 AT 17:07

Para 1st
जीवन का संग्राम अविचलित।
करता चल सत्काम अविचलित।।
अब तोड़ गुलामी की जंजीरें।
भेद लक्ष्य अविराम अविचलित।।

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2 JUN 2021 AT 17:05

Para 2nd
आडम्बर दुष्कृत्य तुम्हीं से।
हे मानव अंतिम सत्य तुम्हीं से।।
सृष्टा बन युगदृष्टा बन।
है मानवता का नृत्य तुम्हीं से।।

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2 JUN 2021 AT 17:03

Para 3rd
बिखरा है बुनकर बन जा।
तूफानों से लड़कर बन जा।।
अंधकार के सर्वनाश को।
दीपक क्या दिनकर बन जा।।

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2 JUN 2021 AT 16:58

बढ़ चल।
पल पल तिल तिल बढ़ चल।।

जीवन का संग्राम अविचलित।
करता चल सत्काम अविचलित।।
अब तोड़ गुलामी की जंजीरें।
भेद लक्ष्य अविराम अविचलित।।
कर आवाह्न नवयुग का निश्छल।
बढ़ चल।।

आडम्बर दुष्कृत्य तुम्हीं से।
हे मानव अंतिम सत्य तुम्हीं से।।
सृष्टा बन युगदृष्टा बन।
है मानवता का नृत्य तुम्हीं से।।
पराजय से न हो विह्वल।
बढ़ चल।।

बिखरा है बुनकर बन जा।
तूफानों से लड़कर बन जा।।
अंधकार के सर्वनाश को।
दीपक क्या दिनकर बन जा।।
होगा भविष्य जीवन उज्ज्वल।
बढ़ चल।।

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14 JAN 2021 AT 16:41

नहीं सोचा नहीं जाना क्यों बन बैठा मैं दीवाना
एक शमां की चाहत में मचल बैठा ये परवाना
है एक ही इल्तिजा मेरी मुक़म्मल साथ हो तेरा
मैं चाहूँ राख हो जाना इश्क़ में खाक हो जाना

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12 JAN 2021 AT 10:24

दीवारों में भी उसकी ही तबस्सुम दिखती है
लग रहा तुमने भी क़लमा-ए-इश्क पढ़ लिया

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