Ubaid Khan Uwaisi   (Ubaid khan اردو شاعر)
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Joined 6 May 2019


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21 APR AT 9:39

तुझे चाँदनी की क्या ज़रूरत इस जहाँ में
तेरा महबूब भी किसी रोशनी से कम नहीं

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19 APR AT 15:03

अगर मोहब्बत की भी इक हद होती तो वक़्त के साथ सिमट जाती
ना बनता वो ताजमहल और मोहब्बत आशिकों के साथ मिट जाती

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19 APR AT 10:49

है तमन्ना कि तुझे हर हाल में अपना बना लूँ
मगर इस सुन्नत में ख़ुशनूदगी उनकी चाहिये

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17 APR AT 12:04

कौन समझता है ख़ामोशी की ज़बां यहाँ उबैद
सुकूं-ए-जिंदगी चाहिये मुतमईन-ए-दिल के लिये

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26 FEB AT 2:28

जाना या ना जाना अब तो सब कुछ लगता है अंजाना
उनसे वफ़ा का व माँगने से बेहतर लगता हैं मर जाना

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12 FEB AT 21:32

हाँ कभी दूर रहकर भी क़रार पाया था तेरी बाहों में
आज भी याद है कितना सकूँ पाया था तेरी बाहों में

याद करके कभी हसना कभी रोना अब है ज़िन्दगी मेरी
है अब भी याद तूने सारी रात जगाया था तेरी बाहों में

अब सारे दर्द फीके पड़ गये हमारे इस दर्द के आगे
ज़रा सी आंख लगी तो ख़ुद को पाया था तेरी बाहों में

ज़माने वालों की अब अच्छी बात भी बुरी लगती है उबैद
तूने हमारे वादों में कितना प्यार बरसाया था तेरी बाहों में

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12 FEB AT 20:08

जिसकी बाहों में हमें आज सुकून-ओ-क़रार आता है
दुआ करो यूँहीं सलामत रहे रिश्ते हमारे वर्ना दर्द भी बेशुमार आता है

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11 FEB AT 21:20

किया था वादा उसी ने उसी का साथ निभाने का
मत पूछिये यार वही मेरा यार बे-वफ़ा निकल गया

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11 FEB AT 16:09

कितने मतलबी यार हज़ार फिरते हैं
करके वादा उम्र भर का यूँही बेज़ार फिरते हैं

करके दस्तबरदार क्या कोई फर्क़ पड़ेगा उन्हें
मुझ जैसे अदना यहाँ बे-शुमार फिरते हैं

उनका मक़्सद ही सिर्फ़ आज़ादी पाना था मुझसे
अब बे-पर्दगी के आलम में सरे बाज़ार फिरते हैं

औरत का मतलब ही पर्दा बताता है मज़हब हमें
क्या समझें सियाह दिल बे-खौफ-ओ-ख़ार फिरते हैं

खौफ़-ए-ख़ुदा भी अब निकल गया मेरे दिल से उबैद
तभी तो हम शैतान के साये में गद्दार फिरते हैं

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9 FEB AT 19:36

दिल अब कहीं भी लगता नहीं उनके बगैर
जिसने अजनबी समझ कर बना दिया गैर

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