तरुणा शर्मा तरु (मेरठी_कुड़ी)   (तरुणा शर्मा तरु)
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Joined 25 September 2020


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Joined 25 September 2020

खुद से सीख रहे हैं
बिखरे ख़्वाब समेटना हम खुद से सीख
रहे हैं,
टूटकर बिखरे काँच से हम संभलना
खुद से सीख रहे हैं,
टूटकर बिखरे अश्क के मोतियों को
छुपाकर रखना हम खुद से सीख रहे हैं,
सुन न सके कोई हाल ए दिल हमारा
अल्फ़ाज दफन करके रखना दिल में
अपने हम खुद से सीख रहे हैं,
जी लिये बहुत नादान बनकर बहुत
खुद को हम समझदार बनाना खुद
से सीख रहे हैं,
चुरा न ले कोई तकलीफ हमारी इसलिए
मुस्कुराहट चेहरे पर सजा कर जीना हम
खुद से सीख रहे हैं,
कोई नहीं होता किसी का यहां खुद का
खुद से हमसफर बनना सीख रहे हैं,

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परचम हम भी अपना
जीवन की हर राह आसान कर जायेंगे
क्या हुआ जो आज हैं अकेले अपना
पथ प्रदर्शक हम खुद ही बनकर
दिखायेंगे,
आज सूर्य डूबा है ख़्वाहिशों का अपना
तो क्या हुआ सूर्य कामयाबी का हम
भी एक दिन चमकायेंगे,
आज गुमनाम है तो क्या हुआ मशहूरियत
का परचम हम भी एक दिन लहरायेंगे,
आज हँसता है ज़माना हम पर तो क्या
हुआ एक दिन इतिहास रच कर अपना
हम भी एक दिन दिखायेंगे,
मुकद्दर आज सोया है तो क्या हुआ
लकीरें नसीब की हम एक दिन बदल कर
दिखायेंगे,

-



मां के वास्ते
पहेली हैं हम एक पहेली बनकर रह गई
ज़िन्दगी है उलझन भरी कच्चे पक्के
धागों में उलझ कर रह गई,
सुलझ कर भी सुलझ न पाये ऐसे
संघर्षो के चक्रव्यूह में फंस कर रह गई
बता न पाते अक्सर हम मां से भी अपने
मन की बात तकलीफ उनकी हम और
न बढ़ाना चाहते,
तकलीफ अपनी खुद तक ही सीमित
रखना हम चाहे मगर कहीं न कहीं पढ़ ही
लेती हैं ,अपनी मां के आँखों में आँसू का
एक कतरा न देख न पायें हम,
छुपाकर तकलीफ अपनी सारी अपनी मां
के वास्ते हंसते रहते हैं,
सब ठीक है की हंसी चेहरे पर रखकर
मां की खुशी के वास्ते अनगिनत तकलीफ
भी मिले हम हंसते हंसते सहने को
भी तैयार हैं,

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बस चलते जाना है
कि बनाकर खुद को खुद का हमसफ़र
कदम से अपने कदम मिलाकर चलते
जाना है,
न तकदीर का ठिकाना न राह का किनारा
बस तराना जीवन का गुनगुनाते जाना है,

अंजान मुसाफ़िर है हम अपने संघर्षों के
तपिश में तपाकर इसकी खुद को हीरा
सा बनाकर एक दिन ज़िन्दगी को अपनी
हर परिस्थिति से गुजारकर चलते
जाना है,

जानते हैं हम तकलीफ होगी बहुत जब
पथ पर जीवन के मन के आत्मविश्वास
को कदम बनाकर आत्मनिर्भर खुद को
बनाते जाना है,

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सुन ना ज़िन्दगी
ख़ता ग़र हो जाये तो गुनहगार न समझ लेना,
दिल तो दिल है काँच का नाजुक सा हमारा
इसको पत्थर न समझ लेना,
अक्सर मायूस भी होता है चुलबुला भी
होता है,
गुनगुनाता भी है,तकलीफ सहता भी है,
हँसता भी है रोता भी है,
जब बेतहाशा बिखरता है टूटकर तो
बिखरता भी है,
दिल के एहसास हैं जो कैद इस दिल में
हम कह न पाते एक किताब है दिल
हमारा इसको पढ़ना तो ध्यान से पढ़ना
एक लड़की का किरदार क्या है कैसा है
एक बार समझ कर तो देखना ऐ ज़िन्दगी,


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लेखन जीवन का आधार
जो कराता है हमें हमारी हकीक़त से
रूबरू वो हमारे जीवन का है आधार,
शून्य मात्र सा जीवन बिन इसके कराये
सम्पूर्णता का है ये एहसास,
हमारे हर अनुभव का महत्व लेखन की
लिखावट में ढ़ल है जाता,
बनकर प्रेरणास्रोत कोरा काग़ज़ रूपी
पन्नें पर है उतर जाता,
हमारी मानसिकता के सही गलत का
निर्णयों का उचित मार्गदर्शी बन
मार्गदर्शन लेखन है दिखलाता,
हमारे तनावग्रस्त मन में उत्पन्न हर
कशमकश भरे प्रश्नों का प्रश्नकर्ता ये
लेखन है बन जाता,

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समाजिक जीवन
हम हमारा जीवन हमारे हिसाब से नहीं
समाज के हिसाब से जीते हैं,
जीवन भले हमारा है भाग्य विधाता ये
समाज बन जाता है,

जीवन दान ईश्वर देकर भेजता है,
मगर हमारे कर्मो का हिसाब ये समाज
रखता है,कितना अनोखा दस्तूर है
आपका जीवन आपका होते हुए भी
आपका नहीं होता,

ये समाज आपका हमारा भगवान
बनकर बैठ जाता है,
और अपना जीवन समाजिक
जीवन बन कर रह जाता है,

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मैं मर्यादा हूँ
कहती है मर्यादा नाराजगी किस बात
की मुझसे,
नारी तुम कोमल सी सुरक्षित मैं तुमको
रखती हूँ
दिलाकर याद तुम्हे सचेत मैं पग-पग
पर तुमको करती हूँ,
मैं मर्यादा हूँ महफूज़ियत से रखती हूँ,
फिर भी दोषी ठहराई जाती हूँ,
कभी संस्कार तो कभी चरित्र मुद्दा
मैं ही बन जाती हूँ,
मैं मर्यादा हूँ एक नारी का अभिमान
कहलाती हूँ,
कभी गहना तो कभी दुपट्टा लाज का
सौन्दर्य में ही तुम्हारा बढ़ाती हूँ,

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छोटी छोटी ख़्वाहिशें
छोटी छोटी तिनको में बँटी ख़्वाहिशें
हमारी अक्सर ज़िन्दगी जीने की वजह
बन जाती है,
कुछ वक्त की मुस्कराहट चेहरे लाई गई
अक्सर उस दौर की तकलीफ को कुछ
हद तक कम कर देती है,जिस दौर से
हम गुजर रहे होते हैं,
सुकून मिलता है कुछ हद तक जिन
इम्तिहानों से हम लड़ रहे होते है,
ये बेवजह की खुशियाँ अक्सर एक नई
ख़्वाहिश को देखने पर अक्सर मजबूर
कर देती है,
जानते है मुमकिन नहीं फिर भी देखने
पर अक्सर मजबूर कर देती है,

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गुलाब यादों का
मुरझा भले जाये मगर महक यादों
की अपनी तरोताजा रखता है,
बीत जाये लम्हा भले उसकी अनछुए
कोमलता का एहसास बनाये रखता है,
वो गुलाब यादों का आज भी बड़ा ही
तरोताजा लगता है,
कभी भीगे ओस से अश्रु के मोती
पंखुड़ी पर नयन रूपी पर उभर
जाते है,
छलक कर जमीं रूपी दामन में हमारे
कुछ इस कदर समा जाते हैं,
जड़ रूपी अवस्था भले उम्र ढ़ला ले
मगर यादों का कारवां कभी उम्र न
ढ़लाता ,बस याद गुलाब का तरोताजा
हमेशा है रखता है,

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