The King 👑   (अजनबी शायर)
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Joined 3 November 2018


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Joined 3 November 2018
21 APR AT 12:25

मन भारी भ्रम में भूल कर रहा हर रोज प्रवृतियों की
तन की हर करीबी है महज ज़हन की स्मृतियों की
दीर्घ दृष्टि में जीवन मात्र कुछ क्षण का, अति प्रबंध क्या करना
ध्यान क्या देना स्वयं क्या हूं, हर शख्स की स्वीकृतियों की
क्षण भंगुर लग रहा है जीवन ,दोहराव की कहानी सा कोई
अपना वजूद ढूंढने निकले समंदर में, कतरा पानी का कोई

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12 MAR AT 20:38

शब्दों में लिपटें हुए भाव पड़ता हूं
अनसुलझे सवालों से रोज लड़ता हूं
कुछ हल्के शब्दों में भारी जज़्बात भरें है
कुछ उथले उथले शब्दों में गहरे राज पड़े हैं
कुछ जीने के पहलूओ में कोई मुश्किल नहीं है
अब चकाचौंध जमाने पर आता दिल नहीं है
कम फिक्र है अब जमाने सी मंजिलें पाने की
जानकर 'मृत्यू' सत्य है कहीं कोई मंज़िल नहीं है
बनूं प्रलोभ पथ का पथिक या खोजू शून्य का विस्तार
तन का नाम है आत्म कौन है बोध हासिल नहीं है
मन को भाए भ्रम भोगे जा सकते हैं एक उम्र में
तन जायेगा पर मन नहीं पाना कुछ भी कामिल नहीं है
बहुत बैचेन करेगा मुझे महज मेरा सवाली रह जाना
बहार समंदर इकठ्ठा कर अन्दर सब खाली रह जाना

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21 JAN AT 16:28

मसला सिर्फ मंदिर का नहीं था सनातन के सम्मान का है
कार सेवकों के बहे खून और उनके बलिदान का है
वीरो की भांति लड़े वह और सीना ताने खड़े रहे
मंदिर वहीं बनाएंगे कहकर अपनी जिद पर अड़े रहे
उन्होंने जो संघर्ष किया था उसका यह परिणाम हुआ
हम फूले नहीं समाय हैं जो मंदिर का निर्माण हुआ
500 वर्ष का जो इंतजार था वह अब समाप्त हुआ
इन आंखों ने यह सब देखा यह सौभाग्य हमे प्राप्त हुआ
चढ़ दुष्टों की छाती पर फिर से भगवा लहराएगा
कलयुग काल खत्म हुआ है राम राज्य अब आएगा
राम लला के लौट आने की हमने राहें ताकी है
अयोध्या नगरी हुई राम की काशी मथुरा बाकी है
रघुनंदन के लौट आने पर तैयारी है दीपोत्सव की
झूम नाचे खुशी मनाएं सबसे बड़े महोत्सव की
राम हमारे राम तुम्हारे राम है सब में बसे हुए
सुंदर छवि मोहित करे धनुष और तरकश कसे हुए
मर्यादा में रहते थे जो पुरुषोत्तम कहलाए हैं
बजाओ ढोल स्वागत में मेरे प्रभु राम आए हैं
राम लला विराज चुके हैं अयोध्या नगरी की गोदी में
साधारण मानव नहीं है वह कुछ तो बात है मोदी में
कहा था अच्छे दिन लायेंगें इन्ह से अच्छे क्या दिन है
2024 में फिर से BJP क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है
- विशाल दीक्षित

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31 DEC 2023 AT 19:36

कुछ कोरी कल्पनाओं में एहसास भर गए हैं
बिखरे सपने नये उगते सपनों में पंख जड़ गए हैं
मन की उथल पुथल में उम्दा ठहराव सा है
लगता है आने को कोई उम्र का पड़ाव सा है
खामोशियां कुछ कुछ लफ्ज़ बुनने लगी है
बैचेनियां कुछ कुछ सुकून चुनने लगी है
कोई है जो उम्र भर साथ चलने को कहता हूं
बहुत जल्द बहुत कुछ बदलने को कहता हूं
बहुत ज्यादा खुद में ही मशरूफ रहने लगा हूं
हर बदलाव को ज़िन्दगी का तकल्लुफ कहने लगा हूं
अध्यात्म का रास्ता और रास आने लगा है
भटका मन लौटकर फिर पास आने लगा है
मेरे अपनों से भी कम बात हो रही है
कई पहलुओं में नयी शुरुआत हो रही है

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12 OCT 2023 AT 18:57

जमाने की तमाम कामयाबियां "अजनबी" तौलने का मन नहीं करता
जिंदगी-ए-ताश का कोई पत्ता अब कहीं खोलने का मन नहीं करता
मेरे दिल में पनपते तमाम शोरों की कातिल मेरी खामोशियां रही हैं
खामोशियां इस कदर मयस्सर है मुझे अब बोलने का मन नहीं करता

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17 SEP 2023 AT 21:06

जाने कैसी 'अच्छी या बुरी' महान या बचकानी ' रहेगी
"अजनबी" कम किरदारों की एक लम्बी कहानी रहेगी

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17 SEP 2023 AT 20:58

चंद पलों के सफर में तमाम मंजिलें बना रखी है
"अजनबी" जमाना मौत से इतना बेखबर क्यों है

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17 SEP 2023 AT 8:38

बातों का लहजा बस बहस बन रहा है
.....नीम चढ़ा करेला भी शहद बन रहा है
मुझे कोई समझ नहीं सकता' अजीब रोग लगा है जमाने को .
.....हर शख्स अपनी ही नज़र में रहस्य बन रहा है ......?????

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21 AUG 2023 AT 16:54

राधे राधे

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7 AUG 2023 AT 20:29

कशमकश भरी है ज़हन में ना जाने क्या आगाज़ करना है
अजनबी' अब तलाश है इस बात की कि क्या तलाश करना है

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