मन भारी भ्रम में भूल कर रहा हर रोज प्रवृतियों की
तन की हर करीबी है महज ज़हन की स्मृतियों की
दीर्घ दृष्टि में जीवन मात्र कुछ क्षण का, अति प्रबंध क्या करना
ध्यान क्या देना स्वयं क्या हूं, हर शख्स की स्वीकृतियों की
क्षण भंगुर लग रहा है जीवन ,दोहराव की कहानी सा कोई
अपना वजूद ढूंढने निकले समंदर में, कतरा पानी का कोई
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