Tarun Kumar Kaushik   (तरुण नरेश देहलवी)
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जब ज़बान सहे
तब क़लम कहे
गुरु गोबिंद दे लाल है!
Joined 23 April 2020


जब ज़बान सहे
तब क़लम कहे
गुरु गोबिंद दे लाल है!
Joined 23 April 2020
29 APR AT 3:33


नफ़रत अज्ञानता हैं
घृणा मानसिक रोग हैं!

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25 APR AT 2:17

कुछ वक्त बाद मोहब्बत अफ़सोस लगती हैं
किसे पता खुशी भी ख़ामोश लगती हैं!

शराबी शराब से कितना भी गीला गला करले
कुछ वक्त बाद पानी की प्यास लगती हैं!

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15 APR AT 2:52

तर्क को तर्क चाहिए
बहस को मूर्ख चाहिए

विचारों की लड़ाई में
विचारों को फ़र्क चहिए

औरत को सिंहासन मिला
सुझाव में मर्द चाहिए

लोग पहचानते हैं मुझे
मुस्कुराने वाला दर्द चाहिए

इश्क़ में यूं मर जाए "तरुण"
कि आह भी ना निकले वो मर्ज़ चाहिए






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12 APR AT 3:43

ना हो अंधेरा तो चांद सितारें की क्या औकात
साय से डरता हैं इंसान तो चेहरे की क्या औकात

बुरा हूं, तो बुराई बताओ मुझे
फिर वही बात तो मशवरे की क्या औकात

इश्क़ करते हैं हम ज़ालिम को झेलकर
ना हो हम फिर नखरे की क्या औकात

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4 APR AT 3:09

तमाशा हो गया हुं, तमाशा होते होते
कि जैसे थक गया हुं, दुआ करते करते

भीड़ में रहता हूं, मेज़बान बनकर
मैं रो रहा हूं मुस्कुराते मुस्कुराते!

बेशक चाहते हैं मेरे जैसा बनना वो
क्या सोचते हैं वो सोचते सोचते

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11 FEB AT 3:12

कोई तो होगा जो सुनेगा हमें!
वही चहिए जो चाहेगा हमें!

दफना कर कौन आएगा कब्र पे
लेन देन हुआ तो याद करेगा हमें!

नींद अच्छी आती हैं, रात भर
कौन हैं जो सताएगा हमें

उसकी फितरत कुछ ऐसी हैं
कि उसका चुप रहना ही चुभेगा हमे!

दिल का बोझ दिल तक रख "तरुण"
उतारने वाला ही रुलाएगा हमें!



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26 JAN AT 13:12

संविधान से बढ़कर संविधान हैं
यही मज़हब यही पहचान हैं!

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3 JAN AT 9:28

मज़हब को दूर रखो तो अच्छा हैं!
फिर देख हर इंसान अच्छा हैं!

मज़हब के बाद मज़हब ही हैं ज़माने में
हर दौर में पाखंड अच्छा हैं!

कभी सवाल तो कर अपने खुदा से
हर बात पे खुदा अच्छा हैं

किसी ने वक्त बदला, किसी को वक्त ने
बहराल, अच्छे वक्त में खुदा अच्छा हैं


मेरे मन से दूर रहना ए–सरफिरे "तरुण"
तेरी शायरी में कौन अच्छा हैं!








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22 DEC 2023 AT 16:51

एक ही जवाब पे फिर सवाल क्या करना
वो जा रहा हैं, जाने दो मलाल क्या करना!

किसी को लुभाओगे कितना महफ़िल में
कि बात बात पे कमाल क्या करना

रंग चढ़ा हैं या उतरा किसी के आने से
पूछ कर हाल क्या करना!

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29 NOV 2023 AT 2:28

तन्हाई अंधेरों से बाहर रोशनी में मुस्कुराती हैं
क्या ख़ाक मुस्कुराने से ज़िन्दगी मुस्कुराती हैं!

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