मुझे क्या पता था की मेरा लिखा किसी को इतनी गहरी चोट देगा ,
मुझे क्या पता था की अल्फ़ाज़ मेरे किसी को जीने की वजह देगा ।
लिखा था मैंने अपने जज़्बात को अपने प्यार के लिये कागज़ पे ,
मुझे क्या पता था कोई उसे अपना समझ कर मुझसे प्यार कर बैठेगा ।
दर्द अपना लिखा था किसी और के लिये चाहत मेरी थी किसी और की खातिर ,
मुझे क्या पता था कोई उन चाहतों को खुद के हिस्से का दर्द समझ लेगा ।
प्यार लिखना आज गुनाह सा लगता है दर्द बयान करने से डर लगता है ,
मुझे क्या पता था किसी और के दिये दर्द को कोई अपना नाम दे जायेगा ।
मेरे हर अल्फ़ाज़ पे हक़ किसी और का है ये समझ ना पाया कोई ,
मुझे क्या पता था किसी और के हक़ पे कोई अपना हक़ जताना चाहेगा ।
नहीं जानना चाहती हूँ में की दिल में किसी के क्या है मेरे लिये ,
मुझे इतना पता है जिसे मैं चाहती हूँ उसके सिवा कोई मुझपे हक़ जता ना पायेगा ।
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