ना कोई उम्मीद ना कोई ख्वाहिश खाली कमरा दिल मेरा तन्हाई और अकेलेपन ने अपना घर बना लिया हो ज़िन्दगी में जैसे... ना कोई चाहत ना कोई तमन्ना खाली कमरा दिल मेरा
कभी कमरा, कभी खिड़की, कभी आसमान लगते हो कभी मंदिर, कभी पूजा, कभी भगवान लगते हो नहीं कुछ भी, तुम्हारे बिना, सब कुछ हूँ तुम्हारे संग मिले जब से हो तुम मुझको, मेरी पहचान लगते हो
तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर यह मेघशून्य आकाश गवाह है इस बात का
तुम बसे हो मुझ में गहरे बहुत गहरे कहीं जीवन-रस की तरह घुले हो मेरी आत्मा के रस में तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर...........
तुम हो यहीं आस-पास जैसे रहते हो घर में यह एक अकेला कमरा भरा है तुम्हारे होने के अहसास से सिर्फ़ देह का होना ही सब कुछ कहाँ होता है ! तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर...........
तुम्हारी यादों की परिधि से घिरी मैं पर तेरी मधुर स्मृति में , सुख का होता है भास ! वो मिलन-क्षणों की स्मृति ले , मुझमें आ स्वप्न संजोते है । तब तब तेरी छवि को निहार, मन तुममें विचरण करता है तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर...........