आहिस्ता आहिस्ता करे हलाल, ऐसा बेदर्द चाहिए,
रूह तक जम जाए जहां, मौसम वो सर्द चाहिए।
हकीमों को बता दो ज़रा, दवा दारू सब बेअसर है,
सुनते क्यों नहीं, ज़िंदा रहने के लिए मुझको दर्द चाहिए।
दिखा कर तीर वो खंजर से वार करता है, फिर भी,
एहतियातन हमें उसके हथियारों की पूरी फर्द चाहिए।
ख़ुद को, ख़ुद से, ख़ुद में मिलाकर बनाया था नायाब, 'प्रवीन'
खबर नहीं थी, ज़माने को हर शख्स ख़ुदग़र्ज़ चाहिए।
-