QUOTES ON #YQPRAVI

#yqpravi quotes

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15 JUL 2021 AT 13:39

जिस रोज़ समर्पण से मन की प्रीत होती है,
उस रोज़ हृदय से संबंधों की जीत होती है।

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13 JUL 2021 AT 23:49

जिसका जवाब दे नहीं सकते, हमसे वही सवाल पूछा जा रहा है,
तुम ख्यालों में किसके हो, हमारे ख्यालों का ख्याल पूछा जा रहा है।

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24 SEP 2019 AT 10:21

उस वर्दीधारी के ज़मीर का तूने फिर अपमान कर दिया,
एक तेरी हिफाज़त की खातिर गर उसने तेरा चालान कर दिया।

चौराहे की कड़ी धूप में वो अकेला तुझे समझाता रहा,
बुला कर खादी मित्रों को तूने एक धरती आसमान कर दिया।

वाक़िफ हूं कि खरबूजा ही नहीं इंसान भी इंसान को देख रंग बदलता है,
हर वर्दीधारी से उलझने को तूने तमाशबीनों को भी बलवान कर दिया।

वो वर्दी की पाबंदियों में था सो चुप रहकर सब सहता रहा,
और तूने खबर ये चला दी कि पुलिस ने तुझे फ़िज़ूल परेशान कर दिया।

ऊंची पहुंच से वो सरकारी कागज़ खारिज कराकर माना तेरा मुनाफा हो गया,
पर झूठी दलीलें देकर तूने खुदा के बही खाते में खुद का ही नुकसान कर दिया।

खैर ऐसे ज़ख्म रोज़ खाते हैं अब तो आदत हो गई है ' प्रवीन '
वो वर्दीधारी था जो उसने तुझे माफ कर तुझ पर फिर एहसान कर दिया।

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22 APR 2018 AT 11:13

तेरे ख्यालों से गुजर जाता है पूरा हफ़्ता,
एक इतवार को तो आराम होना चाहिए।

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19 DEC 2018 AT 11:02

कैसा लिहाज़, कैसी अदब, वो अब बड़े गुरूर से मिलते होंगे,
जो उसकी आगोश की गरमाहट में हर रोज़ पिघलते होंगे।

बेइंतहां कयामत हुस्न की अब मैं क्या मिसाल दूं
संवरती होगी जब वो सादगी से तो आइने भी जलते होंगे।

पाकर उसको पढ़ सकें उसके बदन की तमाम लिखावट,
ज़माने के ये तमाम अरमान रह रह कर मचलते होंगे।

हुस्न के पेश-ए-नज़र में हो जाती होगी नज़रे इनायत,
जब वो सज धज कर अपने घर की दहलीज से निकलते होंगे।

उसके नशीले नैनों को जो एक मर्तबा फुर्सत से देख ले,
ताउम्र यकीनन मदहोशी में गिर गिर कर संभलते होंगे,

राज़ करना सबके दिलों में कोई जा कर उस से सीखे,
बेशक अपनों में उसके नाम के सिक्के भी चलते होंगे।

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6 AUG 2020 AT 10:21

आहिस्ता आहिस्ता करे हलाल, ऐसा बेदर्द चाहिए,
रूह तक जम जाए जहां, मौसम वो सर्द चाहिए।

हकीमों को बता दो ज़रा, दवा दारू सब बेअसर है,
सुनते क्यों नहीं, ज़िंदा रहने के लिए मुझको दर्द चाहिए।

दिखा कर तीर वो खंजर से वार करता है, फिर भी,
एहतियातन हमें उसके हथियारों की पूरी फर्द चाहिए।

ख़ुद को, ख़ुद से, ख़ुद में मिलाकर बनाया था नायाब, 'प्रवीन'
खबर नहीं थी, ज़माने को हर शख्स ख़ुदग़र्ज़ चाहिए।

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8 JAN 2020 AT 13:42

वक़्त की बेदर्दी और सितम अपनों का,
खौफ हकीकत से और डर सपनों का।

ब्याज पर हर रिश्ते को बचाता रहा 'प्रवीन'
अब कर्ज़ अदा भी करें तो कितनों का।

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14 APR 2019 AT 15:31

मेरा मुकद्दर भी तेरी खूसूरती सा संवर क्यों नहीं जाता,
किसी खुशनुमा गुलिस्तां सा ये भी तर क्यों नहीं जाता।

डूब जाने के डर से किनारों पर नहीं मिलता मंज़िल-ए-निशान,
तू भी मोहब्बत के दरिया में उतर क्यों नहीं जाता।

बेघरों की खैरियत रखते रखते गुज़र गई अब ये उम्र,
कोई हमसे भी भला पूछे कि मैं घर क्यों नहीं जाता।

उन गलियों की पुरानी यादों को फिर जीना चाहता हूं,
एक मर्तबा और सामने से मेरे तू गुज़र क्यों नहीं जाता।

आगोश में भरने को एकतरफा चलने का कायदा अजीब है,
किसी दरिया से मिलने कभी कोई समुंदर क्यों नहीं जाता।

टूटे तारे सा आसमां से जुदा होना ही है अगर,
बिछड़ने से पहले ही तेरी बाहों में मर क्यों नहीं जाता।

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21 JAN 2019 AT 20:51

कौन कहता है मेरी नेकी खाली चली जाएंगी,
यकीनन उस फकीर की दुआ असर ज़रूर लाएंगी।

ज़िन्दगी के बोझ से भले किश्ती टूटती बिगड़ती रही हो,
इरादे इतने भी नहीं हुए कमजोर कि ये लहरें हमे चलायेंगी।

गलत फेहमी का आलम उसकी हसरत तबाह ना कर दे,
दरिया बन हमने बुझाया जिसे, वो प्यास हमें क्या सताएगी।

आफताब की तमन्ना है कि आए नींद उसकी आगोश में,
अब जिन रातों को हमने जगाया वो रातें हमें क्या सुलायेंगी।

कोई भी हादसा होने से पहले मालूम है मुझको,
मां की दुवाएं ढाल बन बीच में खड़ी हो जाएंगी।

अंजाम-ए-दीवानगी से मोहब्बत हुई और निकल पड़े हैं,
रास्ते भटक भी गए तो मंजिलें कहां जाएंगी।

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29 DEC 2018 AT 19:01

जब से आईना-ए-तस्वीर लगने लगा हूं मैं,
तब से ज़माने को तीर सा लगने लगा हूं मैं।

बना ना पाया मोहब्बत की बेशुमार दौलत से कोई मकां,
अपनी ही निगाहों में फकीर सा लगने लगा हूं मैं।

मेरे होने ना होने के शायद कोई मायने नहीं,
लक्ष्मण की खींची लकीर सा लगने लगा हूं मैं।

ना मिल रहा है वो, ना उसमे समा पा रहा हूं मैं,
उलझन में मसला-ए-कश्मीर सा लगने लगा हूं मैं।

कलम की तलवार और अल्फाजों से कर रहा हूं घायल,
जंग के मैदान का शूरवीर सा लगने लगा हूं मैं।

पासबान बना कर खड़ा कर देता है अपने सामने हर कोई,
शतरंज की बिसात का वजीर सा लगने लगा हूं मैं।

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