अंधेरों को चीर कर कहां तक उजाला जाएगा,
संभालेंगे भी वही तक, जहां तक संभाला जाएगा।
वो शिद्दत भरी निगाह से बस हमको देखता है,
ये वहम भी, और किस हद तक पाला जाएगा।
सबूतों को बड़ी साजिश से पिरोया जा रहा है,
अब ये इल्ज़ाम ना जाने किस के सर डाला जाएगा।
क्यों हर शख्स मुझे अपने मुताबिक बनाना चाहता है,
किस किस के सांचे में हमको ढाला जाएगा।
इजहार-ए-मोहब्बत भी होगी, तो होगी सबके सामने,
बंद कमरों की मुलाकातों को अब टाला जाएगा।
अपनी मीठी तकरार का, जो कभी करता था फैसला,
खत्म करने को रिश्ता, सिक्का भी वही उछाला जाएगा।
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