मेरे और मोहब्बत के बीच मे एक लंबी खाई है, हाँ ये सच है,हर बार मोहब्बत में मैंने शिकस्त खाई है। कुछ याद हैं उनके,जो मेरे अल्फाज़ों में जिंदा हैं, वरना,बात अलग है,अपने ज़िस्म को अस्थि मानकर, गंगा में डुबकी लगाई है।
तेरे बिना इस 'दिल' पर क्या गुज़रती है तुझे कैसे बतायें बिना 'पीये' ही मुझे कैसे चढ़ती है तुझे कैसे बतायें तुझसे मिलने की 'चाहत' मुझे बेक़रार करती है तुझे कैसे बतायें तेरी याद में मेरी हर 'रात' कैसे गुज़रती है तुझे कैसे बतायें तेरे बिना इस 'दिल' पर क्या गुज़रती है' तुझे कैसे बतायें. ?