अब तो कदम भी सही ह,
राह भी सही है,
मंज़िल भी सही है,
ना किसी से आशा,
ना कोई लालच. . .
फिर. . .
कैसे ये हालात,
क्यों नही़ सुकून,
कैसी ये चाहत,
क्यों नही़ है वक़्त,
कैसी ये उलझन,
क्यों नही़ राहत,
कैसी ये बेचैनी. . .
चाहत क्या है तेरी ए-ज़िन्दगी बता़दे,
वरना कही़ फना़ ना हो जाऊ तेरी मनमानी से. . .
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