शायद घर की हर कथा में,
मेरे व्याकुल मन की व्यथा में,
कट ते उस हर एक केक में,
हाथ तापने सेक में,
कहीं तो मन में रम जाती हो,
तुम खुश हो, याद अब कम आती हो l
अवसर पर पहल बुलावे में,
चम चम करते पहनावे में,
पकते हर नए पकवान में,
नफे में और नुकसान में,
तुम बलिहारी सी बन आती हो
तुम खुश हो, याद अब कम आती हो
तुम दिखती हो आवाज़ों में,
गीतों में और अल्फाजो में,
क्यूं दिखती मेरे आंसू में,
आती जाती हर सांसों में,
अपनी हसीं से मन भाती हो,
तुम खुश हो, याद अब कम आती हो l
मम्मी के हर एक रोने में,
पापा के देर तक सोने में,
भैया के अकबक फूटने में,
भाभी के अक्सर टूटने में,
हां थोड़ा सा तो गम लाती हो,
तुम खुश हो, याद अब कम आती हो l
पहले हसाती फिर आंसू बन जाती हो l
तुम खुश हो, याद अब कम आती हो l
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