प्यार में धोखा बात पुरानी
ग़म काहे को करता प्यारे
नदी, धरा और ऊँचे पर्वत
सब के सब ही ग़म के मारे
बरखा, बारिश, ओस की बूंदें
नम आँखों के यही नज़ारे
हुस्न यार का झूठी बातें
देख जरा तू चाँद सितारे
क्षमा, त्याग ही असली पूँजी
रूह तेरी भी यही पुकारे
नफ़रत, गुस्सा और मायूसी
छोड़ के इनको बढ़ता जा रे!
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