आज़ आपको कुछ बात बताती हूँ। आज एक कहानी अपने अंदाज़ में सुनाती हूँ। एक छोटी सी बच्ची की ये कहानी थी, जिसने अपने आज के पन्नों पर आने वाले कल की भविष्य की कलम से लिखी एक कहानी थी। बड़े होने का शौक बहुत था पर मतलबी दुनियाँ से बेगानी थी। परियों की कहानियाँ उसे लगती बड़ी रूहानी थी। छोटे छोटे ख्वाबों से उसने भरे ज़हन के पिटारे थे। जो लगते उसको जान से ज्यादा प्यारे थे। उन ख्वाबों की मालाएं पिरोए वह बच्ची एक दिन बड़ी हो गयी। वो नन्हीं सी परियां भी न जाने कितनी दूर हो गयीं। अब जब भी उन ख्वाबों पे अपनी निगाहें फेरती है, वो बचपन खुद में एक सुंदर ख्वाब था यह सोच के खूब वो हंसती है। समझ गयी है अब वो जो सपने उसने सजाये थे परियों जैसे वो भी बचपन की मासुमियत् मे पल रहे........।खैर छोड़ो उन बातों को अब ये सारे बातें हो चली पुरानी है। नये सिरे से लिखने को चली अपनी एक नई कहानी है। समझ गयी है शायद वो बचपना ही ज्यादा प्यारा था। टूटा खिलौना टुटे अहसास से कहीं सुहाना था, ख्वाब अधूरे थे पर पूरे होने की उम्मीद तो थी...... खैर अब तो आंसू भी रुसवा कर जाते हैं।
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