ऑफिस से घर जाते वक़्त रिचा को सर ने कहा कि उन्हें अगले चौराहे पर ड्रॉप कर दे। रात के ९ बज रहे थे, रिचा कैसे किसी अनजान व्यक्ति को गाड़ी में इतनी लेट कहीं ले जाती? ऑफिस जॉइन करे मात्र १५ दिन हुए थे। भैया ने भी कह कर भेजा था "रिचा, अपने काम से काम रखना! ज्यादा घुलना मिलना मत। ज़माना खराब है!" रिचा ना नहीं बोल सकती थी, आखिर सर है उसके। असमंजस में रिचा चुप चाप गाड़ी चला रही थी, सर भी गाने बदल रहे थे बैठे-बैठे! सुनसान रास्ता था, रिचा की बैचैनी बढ़ती जा रही थी।
सर की मंज़िल आ गई थी, उतरते हुए सर ने कहा, "मुझे पता है के ये चौराहा तुम्हारे लिए उल्टा पड़ा, पर अब इस रास्ते से जाना, यहां भीड़ है। वो वाला रास्ता सेफ नहीं है जिससे तुम जाती हो, सुनसान हो जाता है इस टाइम! जितना हिस्सा सुनसान था, वहां तक का साथ निभा दिया मैने!"
रिचा दो मिनट तक सर को देखती रह गई! शायद, सब एक जैसे नहीं होते!
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