कोमलता तेरी भी क्या लाजवाब है
इश्क़ की नुमाइश तुझसे ही किया करते है
शब्दो से बया नही तेरे लाल रंग दा इश्क़
काँटो भरी निगाहे भी कातिल कर जाती है
तस्स्वुर के आलम का महज एक जरिया है तू
हर इश्क़ के इतिहास का बेताज बादशाह तू
वफाओ का सिलसिला ना जाने कब सिमट जाए
मुरजाने पर भी तेरे मोहब्बत-ए-खुशबू अमर है
दिल-ए-दर्द के उफ्फानो में सजिशिया बहोत हुई
तेरे इश्के दे लाल रंग दा पर्दा बेहिसाब सा गिर गया
खैरियत क्या पूछेंगे वो इश्क़ के बेवफा मरीज
कैफियत तो जान ले ते इस बेजुबान फूल की
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