खुली किताब सी मैं.. पढ़ने दिया था तुमको.. जाने क्या सोच कर.. लिखना शुरु कर दिए. खुली किताब सी मैं.. जज़्बात मेरे अपने.. जाने क्या सोच कर.. अपने अल्फ़ाज़ पिरोने लगे.. खुली किताब सी मैं.. अपने रंग के कवर में लिपटी.. जाने क्या सोच कर.. कवर बदलने शुरू कर दिए.. खुली किताब सी मैं.. आज़ादी में डोलने वाली.. जाने क्या सोच कर.. आलमारी में सज़ा दिए.. हाँ थी अधूरी किताब.. नहीं करनी है ऐसे पूरी.. जैसी हूँ वैसी पढ़ो सरकार..
गर मन में नाराजगी हों किसी भी बात को लेकर तो उसको कुछ पलों के लिए मिटा दिया करो यूहीं ख़ामोश रहने से मन, दिल और दिमाग इत्यादि उलझन में पड़ जाते होंगे न तुम्हारे... ♥️🖤♥️