करती हूं तुमसे बेहद मोहब्बत , मगर नहीं लालच मुझे नेकी जमा करने की ! ए ख़ुदा तेरी गुन्हेगार ही सही l जानती हूं में थोड़ी अच्छी तो हूं ; पर जन्नत जाने के काबिल नहीं।
मैं तो दर्द तुम्हारा बाँटना चाहती थी, हमदर्द तुम्हारी बनना चाहती थी। मगर तुमने तो दर्द के सागर मे मुझे ही धकेल दिया, अपने दर्द का गुनहगार मुझे ही बना दिया।