हर घडी से गुज़रना है मुझको
हर कांटे को परखना है मुझको।
क्या सही क्या गलत, सही सही में क्या गलत
हर चीज़ को समझना है मुझको।।
अंदाज़ ए नफरते, लहजा, वो बाते
ज़र्रे ज़र्रे से मिलना है मुजको।
आसमान की बुलंदियों के वो परिन्दे शहेंशा के
ये खाब है जिसकी ताबीर करनी है मुझको।।
ये झाल की दुनिया लग जाये जो हक़ीक़त की
इन उलझे हुए धागों से निकलना है मुझको।
झूठ जो ओढ़े है सच्ची का चादर, परिजा
इन वार को भी पलट कर देखना है मुझको।।।
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