माना कि बुझे च़रागों से रोशनी नहीं आती,
कभी इन्ही च़रागों ने रोशन,हमारे रास्ते थे किए।
लिखे थे रोशनी मे इनकी,जो फसाने शिद्दत-ए-मोहब्बत के,
मज़मून के छलकते अल्फाजों ने,इंतज़ार को मायने दे दिए।
नावाक़िफ रहे वो सरहदे ख़ामोशी से लेकिन,
लबलबाती आँखों ने हिज्र के किस्से सुना दिए।
-