जिस कल्पना में हो प्रेम रीत
उस कल्पना को संवार दो।
लिख रहे है तुम्हारी दास्तां
कभी प्यार से हमें पुकार दो।
चल रही है बंदगी,
थक रही है ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी में बंदगी को
एक नया मुकाम दो।
जिस ख़्वाब की तुम वजूद हो,
उस ख़्वाब में मुझे स्वीकार लो।
दिल की सिलवटों पर मेरा नाम,
नज़र में ना आये तो नकार दो।
है गर मर्ज तुझे,तो मेरी वफ़ा का दवा लो।
भरोसे के सेज पर आकर इस हकीकत को आजमा लो।
फिर भी एहसासों के दरख़्त में जज्बातों के फूल न खिले,
तो इस मोहब्बत का गुलशन यक़ीनन तुम उजाड़ दो।
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