इक शेर इक मतला मैं माँ के नाम लिखता हूँ। दुनिया के सभी माँओं को मैं प्रणाम लिखता हूँ।। इससे और ज्यादा क्या ही लिख सकता है इक शायर। मैं अपने माँ के चरणों को परम धाम लिखता हूं।।
गोली मारी, बहुत अच्छा किया। पर भरे बाजार गला रेतते तो, और अच्छा होता। और दिल सहम जाता उन जैसे कुत्तों का, बहनों को देखकर, और बेटियों का भविष्य, कुछ और उज्जवल होता।
हमने दिल को अपने, प्यार में नीलाम कर डाला। अपने इश्क का इजहार सरेआम कर डाला।। उसके हुस्न पे उसको गुमान था इतना । भरी महफ़िल में पागल कह मुझे बदनाम कर डाला।।