में तुम्हारी प्रतीक्षा में रहता हूँ। मुझे पता है कि तुम नहीं आओगी। पर इस प्रतीक्षा में कितना रोमांस है, ये तुम्हारे आने ना आने से जुदा है। इसमें गली के कोने पर जाकर पलटना है और ख़ाली गली की चुप्पी को चुगना है। ये नास्तिक आदमी की प्रार्थना जैसी है जिसे पूरा होने का कोई हक़ नहीं है। जैसे, मैं जब तुम्हारे होंठों के किनारों को अपनी उँगलियों से छूता था तो तुम पूछती थी कि क्या कुछ लगा हुआ है? मैं कहता था कि मुझे तुम्हारी मुस्कुराहट को छूना अच्छा लगता है। । तुम पूछती कि, क्या किसी की मुस्कुराहट को छुआ जा सकता है? तो मैं कहता, नहीं। फिर क्या छूते हो तुम?, तुम पूछती और मैं फिर इंतज़ार करता इस बात पर तुम्हारे मुस्कुराने का। मैंने कई बार तुम्हारे होंठों के किनारों पर अपनी उँगलियाँ फेरी हैं पर कभी चुटकी भर मुस्कुराहट बटोर नहीं पाया था। मुस्कुराहट नहीं बटोरी जा सकती है वैसे ही तुम्हारी प्रतीक्षा मे तुम्हें पाया नहीं जा सकता है। पर अप्पू तुम्हें मैं बता नहीं सकता इस जादू को कि जब मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में किसी मोड़ पर मुड़ता हूँ तो मेरे होंठ बिल्कुल वैसे ही मुसकुराते हैं जिस मुस्कुराहट को मैं न कभी बटोर पाया था और न कभी छू ही पाया था।
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