रब न करें
लक्ष्य भ्रष्ट पंछी
पंखों में थकान समाए
गहरी नींद सो जाए
कोई भी होता नहीं लक्ष्य भ्रष्ट
कभी कभार लक्ष्य खुद मरती
बेमौत या खेल जाती आंख मिचोली
और नयी चीर पहन, आती उभर
नव सूर्योदय जैसे, अरमान की छाती को चिर
रब न करे पंछी तु ज़िल्लत की मौत मरे
पंछी तु लक्ष्य का सच जान ले
स्वयं को संपूर्ण मान ले, भर उड़ान
चल अनंत की ओर, लक्ष्य की दहलीज को छोड़।
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