महलों में रहने वाले अक्सर धोखा खा जाते है आंधी धीरे आती है तो झोपड़ियाँ बर्बाद कर देती है अरे उन महलों वालों को क्या पता जब आंधी तेज आती है तो महल को भी बर्बाद कर जाती है
अचानक खुल गईं दिल के कमरे की खिड़कियाँ, कुछ बीते हुए लम्हों की तेज आँधी के थपेड़ों से। गुबार-सा फैल गया हर तरफ यादों की धूल का और महक बरसों से बंद पड़े कमरे में सीलन की तब्दील हो गई कुछ मुरझाए फूलों की खुशबू में। वक्त बदला है मगर खुशबू से एलर्जी आज भी है मगर इस बार छींकें नहीं आईं हर बार की तरह। आई बस! आँखों में लाली और हल्की-सी नमी।
Unsaid words
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