असल में हम जिंदगी में आसपास ऐसे बहुत से लोग पाते हैं जो कहीं भी समय पर जाना शान के खिलाफ समझते हैं। किसी जायज वजह से देरी हो जाए तो बात समझ में आती है पर कई तथाकथित बड़े लोग हर जगह देरी से पहुंचने में अधिकार समझते हैं। उन्हें लगता है कि समय पर पहुंचना तो 'साधारण' और 'सामान्य' का काम है। ग्लैमर वर्ल्ड के लोग तो इसी में 'स्टारडम' मानते हैं कि मैं 8 बजे के अवार्ड फंक्शन में 11 बजे पहुंचा। लेकिन यदि जीवन में ऐसा अनुशासन आ जाए तो आप सफलता के शिखर पर पहुंच सकते हैं जिसका उदाहरण भी अमिताभ बच्चन हैं। यदि उनके आगमन का समय 6:15 बजे है तो आप उनके उस स्थान पर प्रवेश करने के क्षण से अपनी घड़ी मिला सकते हैं। लेकिन न जाने क्यों हमारे कई मित्र देरी से आने का उपक्रम तो सदैव करते हैं। पता नहीं क्यों समाज में समय से आने वाले को 'खाली' और 'निठल्ला' माना जाता है।
सत्य यह है कि समय से आने वाला न केवल स्वयं बल्कि सबके हित में सोचता है और देरी से अपनी महत्ता जताने वाले लोग भूल जाते हैं कि उनका यह महत्व कितना क्षणिक और भंगुर हैं- शैलेश लोढ़ा
मेरी मोहब्बत अटल संग रहेगी सिद्ध गोमतेश्वर की तरह रूह पाक करेगी स्वर्ण मंदिर की तरह छवि श्वेत रखेगी ताज़महल की तरह दर्द की दवा बनेगी कोणार्क मन्दिर की तरह इतिहास खड़ा करेगी हम्पी के खंडहरों की तरह ज्ञान-पथ पर चलायेगी नालंदा पीठ की तरह कला प्रेमी बनायेगी खजुराहो की मूर्तियों की तरह ।।
कृत्रिम है सब समाज,व्यक्ति विशेष और परिवार के बंधन स्त्री स्वंय बंधी है चाहे तो पल में उजागर कर सकती है यथार्थ धराशायी कर अभिशप्त धारणाओं को अपने लिए बनाते हुए एक स्वतंत्र 'स्पेस' ।
धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो.. जिंदगी क्या है किताबों को हटाकर देखो, फासला नजर का धोखा भी तो हो सकते है वो मिले ना मिले हाथ बढ़ाकर देखो ।। -निदा फ़ाज़ली