मैं क्या हूं ये मुझे पता नहीं,
मैं आया क्यों हूं,
इसका भी मुझे पता नहीं,
पर जब हुआ मुझे ये एहसास,
तब मैं निकल पड़ा
अस्तित्व की खोज में,
मैं था एक मुसाफिर,
रास्ते का मुझे पता नहीं था,
चल रहा था सफर में,
पर ये कहां से गुजरेगी
ये भी मुझे पता नहीं,
कहां से गुजरेगी रातें,
दिन का ठिकाना भी पता नहीं,
क्या मिलेगी मंजिल,
या होगा सच से सामना,
क्या होगा मेरे साथ
ये भी मुझे पता नहीं...
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