Su'Neel Kumar   (नील (Neel_The_Poet))
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Joined 12 November 2019


Joined 12 November 2019
8 HOURS AGO

कुछ कहते कहते ये रुक जाना मेरा,
तुम समझो है ख़ामोश फ़साना मेरा।

ये, वो, कुछ, कुछ नहीं, यूँ ही, बस,
अजीब सा ही तो है अफ़साना मेरा।

जहाज़ का पंछी तुम समझते हो ना,
तुम जानो बार बार लौट आना मेरा।

तुम्हारी बातें तुम को सुनाना चाहूँ मैं,
दिल हो चला है शायद दीवाना मेरा।

तुमसे काफ़ी कहना तो चाहता था मैं,
पर तुमने भी दर्द कहाँ पहचाना मेरा।

मेरे अंदाजे बयाँ से वाक़िफ़ हो 'नील'
सुलझन ही तो है सब उलझाना मेरा।

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19 HOURS AGO

कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें

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6 MAY AT 23:45

शाम ढलते ढलते उस का ख़्याल आया,
जिसके पास दिल के टुकड़े निकाल आया।

तुम से बिछुड़ कर मैं करूंगा क्या हमनवां,
यूँ ही बैठे बैठे ख़्याल आया सवाल आया।

उससे मिलकर चला तो एक काम किया,
मैं उसकी आँखों में इक दीया वाल आया।

हम उनसे वो न कह सके जो कहने गए थे,
बाद में बहुत टूटे, हमें बहुत मलाल आया।

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6 MAY AT 16:07

तू ख़्वाब से भी खूबसूरत तस्वीर लगती है,
जिसकी कोई दे न सके वो नज़ीर लगती है।

कई बार मेरी तम्मनाओं ने तुझे छूना चाहा,
पर तू धड़कन पे खिंची हुई लकीर लगती है।

तू एक दफ़ा उससे रू-ब-रू होकर तो देख,
जिसे तू अपने जहान की तक़दीर लगती है।

कैसे फूल और खुश्बू से उसकी बानगी कहूँ,
मुझे जो सूरत इस जहाँ में बेनज़ीर लगती है।

पर जब तुम्हारी सादगी का ख़्याल आता है,
तेरी हर एक बात मुझे फिर जंजीर लगती है।

मैं तो ख़ामख़ा ख़ुद को सुल्तान कहता हूँ
असल में ये रूह ये जाँ तेरी जागीर लगती है।

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5 MAY AT 21:27

रात के 11:30 बजे है। आधी रात होने को है, लेकिन प्रकाश का अता-पता नहीं। आशा ये सोच रही थी दरवाज़े पे दस्तक हुई।

'दरवाज़ा खोल साली, अपने यार के साथ अय्याशी करती है और बनती है पतिव्रता', नशे में धुत प्रकाश ने आशा पर चिंघाड़ा।

'साली, ये तीनों बच्चे मेरे नहीं हैं' जिसके हैं उसके पास लेकर जा', प्रकाश आशा पर लाँछन लगाते बोला। तीनों बच्चे सहमे, आशा निराश।

'करुणा, प्रकाश ने मेरे करैक्टर पे फिर
उँगली उठाई है,' आशा बोली।
करुणा बोली, 'औरत के लिए
चरित्र उसकी दौलत है और
स्वाभिमान उसका साथी।

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4 MAY AT 23:32

ज़िंदगी तेरी रुसवाई पे गिला नहीं होता,
सब को सब कुछ तो मिला नहीं होता।

हमें ख़ुद की दोस्ती अच्छी लगने लगी है,
तन्हा लोगों के साथ काफ़िला नहीं होता।

बहुत से चेहरे मुरझाए मुरझाए हैं यहाँ,
जो नाज़ुकी से हारे जोशीला नहीं होता।

ये जो लम्हें हैं सदा तो नहीं रहने वाले,
हमेशा हर शै का सिलसिला नहीं होता।

क्या फ़र्क पड़ता है जब बोझ रूह पे है,
फूल खिले या, फूल खिला नहीं होता।

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4 MAY AT 12:28

हम से भी मोहब्बत अब निभाई नहीं जाती,
और तुम से भी मोहब्बत जताई नहीं जाती।

तुम सरेआम वफ़ा के कागज़ात चाहते हो,
पर हमसे दिल की सूरत दिखाई नहीं जाती।

क्या बात है, वो क्या बात है, वो क्या बात है,
हम समझ नहीं पाते तुमसे बताई नहीं जाती।

दिल के दर्द हम अपने साथ लेकर ही जायेंगे,
कुछ ऐसी पीर है किसी को सुनाई नहीं जाती।

तेरे दर्द का तू जान मैं उसमें शामिल क्यों रहूं,
हम से जब अपने ही पीर उठाई नहीं जाती।

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4 MAY AT 7:54

रात के ठीक बारह बजे थे। पड़ोस में रोना-बिलखना
शुरू हुआ, 'हाय मेरा लाल, हाय मेरा बेटा'।
नन्हे की माँ छाती फाड़कर चिल्लाने लगी।

पड़ोसी रामचन्द्र ने जैसे ही दरवाज़ा खोला
आँगन में लेटी उसकी 2 साल की बेटी की
घिग्घी बंध गई। रामचंद्र और उसकी पत्नी
सकते में आ गए।

'चलो इसे गोद में लो भगत जी के पास चलते हैं
लोनी,' रामचंद्र बोला। रात के स्याह सन्नाटे में
साइकिल लोनी की तरफ़ दौड़ी।

'ओम हीं क्लीं...'इसे झपट्टा हो गया है', भगत बोला।
दोनों भय से काँपने लगे। 'भगत जी इसका उपाय'।
'जलती चिता से माँस' भगत बोला...।

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3 MAY AT 17:06

कभी थकता नहीं मैं इंतज़ार करके,
उस हसीन के वादों पे एतबार करके।

उसे मज़ा आता है जाने इस में क्या,
वो रुला देता है अक्सर इंकार करके।

मैं उसकी हाँ में हाँ न में न हो जाता हूँ,
वो ख़ुद को लाए जब महकार करके।

एक तो वो ख़ुद कलियों की बानगी है
और बोले लफ़्ज़ों को शहकार करके।

मैं घंटों यूँ ही यूँ ही सोचता रहता हूँ,
अच्छा लगता है यूँ वक्त बेकार करके।

मेरे दिल में वो इतना गहरा समाया है,
देख लो चाहे मेरे टुकड़े हज़ार करके।

मैं तुझ को क्यों सब से जुदा कहता हूँ,
देख मेरी ऑंखों से अपना दीदार करके।

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3 MAY AT 10:37

गीत
तेरे लिए सजना नथ, झुमका, सजना
लाली की झिलमिल,मेहंदी का रचना।

ये मयकश सी हवा कहाँ ले जा रही है,
पत्तियां साज छेड़े है धूप भी गा रही है,
मन पे नशा है मदहोशी सी छा रही है,
ए मेरी सखी तू मुझ पे ऐसे तो हँस ना

तेरी आवाज़ में है जाने ये कैसा जादू,
मुश्किल से संभले, रहे दिल पे काबू,
मन तड़पे है हर पल, दिल रहे बेकाबू,
मेरी बात बहकी आवाज में है बस ना

दिल की ये बातें मैं किस को बताऊँ,
दो बोल कहने को मैं कहाँ से ले आऊँ,
खुश्बू है वो मैं कैसे किस को दिखाऊँ,
मुश्किल समझना, है मुश्किल कहना

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