सत्यम पाण्डेय 🕊️   (दीवाना राधे का)
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Joined 31 July 2018


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सुनो कुमुद..!
मेरे ओझल हो जाने के बाद,
तुम चांद को ताकती हो या निहारती हो ?
या पढ़ लेती हो पुराने खत जिनके जवाब
तुमसे आजतक नहीं दिए गये 🤔

मुझसे क्या पूछती हो?🥺

मैं ज्यादा कुछ नहीं करता,
तुम्हारे न होने पर
बैठ जाता हूँ दीवार के सहारे
और महसूस कर लेता हूं
जैसे तुम पीठ से पीठ सटाकर बैठी हो।

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ज़िस्म हर रोज़ जाग जाता है
रूह सोई की सोई रहती है..।

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लोग ज़िस्म के लिए पागल हैं,
लेकिन मैं..!
बैठा हूँ इंतजार में
कि जब तुम मिलोगी
तो अपने पास बैठाकर,
हाथ पकड़कर,
आँखें मूंदकर,
तुम पर लिखी हुई पहली
कविता सुनाऊंगा
और
सौंप दूँगा अपने अंदर पाला हुआ
एक कवि तुम जैसी कल्पना को...☺️

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वो लड़कियाँ ही आखिर में
होती हैं सबको प्यारीं...!

जो लड़कियां,

ससुराल में दौलत नही
प्रेम लेकर जाती हैं......!!

-



दिल का इक इक कतरा दरिया दरिया कर देना,
प्रेम में तुम अपने जीवन को सांवरिया कर देना.

-



दूसरा दूसरा प्रेम..! तुम्हारा. ☺️

-



एक पत्र.. कुमुद तुम्हारे लिए...!

-



जिसे तुम लड़ना कहती हो
वो मेरे हिसाब से प्रेम है
कल भी जब मैंने जोर से
बुलाया था तुम्हे छत पर,
और आज भी जब मैं डांट रहा हूँ
इस आंगन में दबी आवाज से,

करीब आओ..
हर बार की तरह फिरा देता हूँ
हथेली गालों में, उंगलियां बालो में
और अंगूठा नम हुई आँखों में एकसाथ,
अगली डांट तक के लिए..

लो तुमने फिर दबा लिया पल्लू कमर में
प्रेम में इज़ाफ़ा करने के लिए..

-



इधर सुनो...!

कुछ लोग कितना पागल बनाते हैं
अपनी मुहब्बत को है न?
मैं तुम्हारे लिए शोलों पर चल सकता हूँ
कुर्बान हो सकता हूँ, ये वो, फलां फलां.

ऊपर देखो, अरे उत्तर की ओर
ये जो ध्रुवतारा है न
ले आऊं क्या तोड़कर तुम्हारे माथे
पर सजाने के लिए.

अब ये मत कहना
मैं बातें बनाने में माहिर हूँ
अच्छा अच्छा घूरों मत चाय पिओ..

-



इधर सुनो...!

ये जो रंग बिरंगे भँवरे हैं न
इन्होंने सिर्फ चूमना सीखा है
पंखुड़ियों को.

काश...! देखा होता इन्होंने
हम दोनों को बैठे हुए
उस शाम बनारस घाट पर,

जब तुम सट कर बैठी थीं मुझसे
और मैं तुम्हें बाहों में भरने के
बजाय आंखों में भरता जा रहा था.

खैर हमें क्या....!
तुम अपना पाँव बढ़ाओ,
ढीली हुई पाज़ेब बांध देता हूँ...☺️

-


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