लोग तो लोग है, लोगों की तरह देखते है,
एक हम है उसे बच्चों की तरह देखते है,
हमको दुनिया ने लकड़हारा समझ रखा है,
हम तो पेड़ों को भी परिंदो की तरह देखते है,
मैं जो देखूं, तो झपकती नही पलके मेरी,
और हजरत, मुझे अंधों को तरह देखते है,
तुम तो फिर गैर हो, तुमसे तो शिकायत कैसी,
मेरे अपने, मुझे गैरों को तरह देखते है,
तेरा दीदार, कज़ा होता नही है हमसे,
हम तुझे देखने वालों की तरह देखते है।।
-