Sonu Kumar Saxena   (Sonu Sarthak)
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Simple living High thinking
Joined 25 July 2019


Simple living High thinking
Joined 25 July 2019
1 MAY AT 21:33

मैं मन

हल्का चहका सा थोड़ा थोड़ा बहका सा,
बहुत सी उम्मीद लगाए, बहुत से राज़ छिपाए,
मैं मन प्रीत सा कभी रीत सा
जो तुझको मुझसे लगाए
मुझको तुझसे लगाए

मैं हर आगमन पर सोचता बहुत हूं
मैं हर आवागवन पर खिलता बहुत हूं
अपने आप को तसल्ली दे कर
बस खुद को बहलाता रहता हूं
रिश्तों में घुल मिलकर, यादों को बुन बुन कर
इठलाता बहुत हूं,
मैं मन प्रीत सा कभी रीत सा
जो तुझको मुझसे लगाए
मुझको तुझसे लगाए

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1 MAY AT 21:20

खरीद...

ना खुशी खरीद पा रहा हूं
ना हंसी खरीद पा रहा हूं
ना गम बेच पा रहा हूं
ना वहम बेच पा रहा हूं
फिर भी घर से क्यों निकल रहा हूं
कमाने के लिए
जरूरतों के लिए या
जमाने के लिए ...
ख्वाहिशों के लिए या
खुद को सताने के लिए....

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28 APR AT 21:15

बाज़ जिन्दगी

नाराज़ सी जिन्दगी
बे आवाज़ सी जिन्दगी
डूबते ख्याब सी जिन्दगी
बदलते मिजाज सी जिंदगी
खौफ और आज सी जिंदगी
दर्द में राज सी जिंदगी
मचलते जज़्बात सी जिंदगी
कुचलते एहसास सी जिंदगी
मतभेदों में सवाल सी जिंदगी
हर बार बवाल सी जिंदगी
धर्म में ढाल सी जिंदगी
रिश्तों में सवाल सी जिंदगी
सच में उबाल सी जिंदगी
झूठ में जुमाल सी जिंदगी
फिक्र में ख्याल सी जिंदगी
जीने की चाह में मशाल सी जिंदगी
पर हर बार बवाल सी जिंदगी
और हर बार सवाल सी जिंदगी

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25 APR AT 20:10

मैं समय...

हां...मैं समय हूं
मैं याद मैं पल मैं उम्मीद मैं कल
मैं न्याय मैं काल मैं युद्ध मैं मौसम
मैं समय हूं
मैं अमर अजर अभियंता हूं
मैं ही शुरुआत हूं
मैं ही भ्रम हूं
मैं जीवन तेरा मैं विश्वास तेरा
मैं आनंद में, मैं चिंतन में,
मैं दुख में, मैं दर्द और चुभन में,
मैं शोक में, मैं शौक में,
मैं मौकों में, मैं धोखो में,
मैं समय हूं,
मैं मित्रता में, मैं नकली रिश्तों में,
मैं उत्थान में, मैं पतन में,
मैं विजय हूं मैं अजय हूं
मैं क्रोध में भी, मैं बोध में भी,
मैं धर्म जाति में, मैं घाती में
मैं ... मैं समय हूं, निरंतर हूं, कालांतर हूं।

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25 APR AT 20:05

मैं मृत्यु हूं...

हां मैं मृत्यु हूं....मैं जीवन सत्य हूं
मैं कर्ता कर्म में निशब्द अघोरी सी
मैं शरीर का अंतिम गंतव्य हूं
मैं जीवन का मूल्य दर्शाती हूं
मैं पारदर्शिता को परिभाषित करती हूं
और कड़वा घूंट पिलाती हूं
क्योंकि ...मैं मृत्यु हूं...
मेरा कोई आकार नहीं हैं
मुझे किसी से सरोकार नहीं है
मैं सत्य में विशेष महत्व रखती हूं
मैं असत्य का नाश करती हूं
मैं तपती किरणों जैसी विस्मय हूं
पहचान मुझे मैं ही तो समय हूं
मैं हां मैं मृत्यु हूं....मैं कोई स्वपन नहीं
मैं कोई उलझन नहीं....ना ही मैं बोध हूं
मैं तो गति हूं जो यात्रा को पूर्ण कराती हूं
मैं तेरी ही मति हूं जो तेरे गुण,
अवगुण बताती हूं....मैं मृत्यु हूं... मैं समय हूं

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25 APR AT 19:58

इच्छा...

इच्छा ही है जो हमेशा उत्तेजित रहती है
ये इच्छा हमारे रगो में लालसा लिए बहती है
ये इच्छा ही है जो मनमोहक दर्श कराती है
हां ये इच्छा मन के मोह बन ललचाती है
जब मानव समझने लायक होने लगता है
इच्छा के बीज का सहायक होने लगता है
इच्छा तो हमें हर विषय में तर लेती है
इच्छा अपना काम बड़ी आसानी से कर लेती है
इच्छा ही और को और बढ़ाती है
इच्छा घात लगाए रिश्तों को लड़ाती है
इच्छा हर युग में लड़ाई झगड़ों में
वाद विवादों में हर कलह में
इच्छा तो भूख की हर सुलह में
इच्छा मन के दरवाजे पर
जब जब खट खटखटाती है
तब तब इच्छा सीधे रास्तों पर

भ्रम के चौराहे बनाती है
इच्छा ही वर्तमान है भूत है भविष्य है
इच्छा सागर जैसे गहरे पानी जैसी मृदुल है
इच्छा का भवसागर उम्र के
हर दौर का आलेखन है
इच्छा तो काल्पनिकता का जीवित दर्पण है
जब तक जीवन है तब तब इच्छा है
जब तक भ्रम है तब तब इच्छा है।

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22 APR AT 8:12

आज...

मुझे हिंदू पसंद नहीं
मुझे मुसलमान पसंद नहीं
मुझे बस इंसान पसंद है

मुझे जरा ज़रा सी बातों पर
बवाल पसंद नहीं
मुझे प्रेम पर हर एक सवाल पसंद है

मुझे अलग थलग पसंद नहीं
मुझे बाकी तो सब पसंद है

मुझे धर्म जात पर फसाद पसंद नहीं
मुझे मुझ से शुरु विवाद पसंद नहीं
मुझे बस सबमें घुलता आज पसंद है

मुझे बटवारा पसंद नहीं मुझे रिश्तों में हनन खनन पसंद नहीं
मुझे एक दूसरे में लगाव पसंद है

मुझे हर त्यौहार पर खुशियों भरा शोर पसंद है
मुझे हर मन की दीवारों पर अमन प्रेम के लिखे गीत पसंद है
बस मुझे गंदे झूठे मक्कार पसंद नहीं
मुझे प्यार से बने इकरार और तकरार पसंद है।

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21 APR AT 21:09

गुनाह हूं

शायद ख्वाहिशों में
मैं आदतों की पनाह हूं
मैं पैसा हूं इसलिए
इच्छाओं के लिए गुनाह हूं
मैं सब्र पर भी
आशाओं को जलाता हूं
और बेसब्री पर हर बार
अटपटे खेल दिखाता हूं
मैं जीने का भ्रम हूं
इस लिए सताता हूं
शायद ख्वाहिशों में
मैं तरकीबों की अगाह हूं
मैं पैसा हूं इसलिए
परिणामों में गुनाह हूं...

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21 APR AT 18:24

जरूरत पड़ने पर जब अपना ही साथ छोड़ जाए,
तो ये मन अपनी व्यथा अकेलेपन को सुनाए,
जब एहसास अपनों में इतर जाए
फिर झूठे रिश्तों की महक झूठा इत्र बन जाए

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20 APR AT 7:15

कहानी...

कहानी कभी खत्म नहीं होती है
जीवन के आरंभ से अंत तक
निरंतर बनी रहती है
कहानी गढ़ते रिश्तों का
गहरा समंदर बनती है
कहानी कभी एहसासों की लहरों में
बहती नदी बनती है
कहानी कभी उम्मीदों का गहरा सा
सागर बनती है
कहानी कभी कभी उम्र बनकर
खुद को सुनाती है,
कहानी शुरू से ही सफर को लुभाती है
कहानी गुप चुप में भी हर बात बताती है।

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