गांव से शहर जाने में पैसा कमाने में छोड़ कर चल दिये दूसरे शहर में दो वक़्त की रोटी कमाने में बैंक में पैसा बढ़ाने में पैसो की ज़ीरो बढ़ाने में घर अकेला रह गया इस भाग दौड़ के जमाने में।
ही मेरा दिन होता था तेरे दीदार से ही होती थी रात तेरे सिवाय ओर कुछ समझ नही आता था इतनी होती थी तेरी मेरी बात पर जाने क्या हो गया तुझे मेरे दिलबर अब बरसों बीत गये पर नही हुई अपनी बात।
अब कोई भी अच्छी नहीं लगती कितनी भी हो सच्ची पर सच्ची नही लगती कुछ इस कदर झूठ बोल कर लूटा हैं हमें लोगों ने अब कितना भी सच बोल ले कोई हमें वो सच्चाई नही लगती।
बहुत बरस रहे हो ऐ बादल तुम बिन मौसम बरसात में मेरे आँखों के आँसू भरके बरस उस हरजाई के घर आंगन के पास में खबर करो उसको तुम मेरा हाल क्या है उस बेवफा के इंतजार में।