कुछ तो हैं , जो यहाँ रास नहीं आ रहा
चाहा था , जो मिलने पर भी
मन को नही भा रहा!
अब किस मंजिल की तलाश है ,ज़िंदगी को!
यार अब मुझें ये भी तो समझ नहीं आ रहा।।
मानती हुं कुछ दिन बाद चीज़ों
की अहमियत कम होती हैं ,
बीतते समय के साथ ज़िन्दगी
नये सपने संजोती है।
पर फिर भी मन में एक
सवाल आ रहा हैं!
जिसे कहते थे सुकून,
उसमें सुकून क्यों नहीं आ रहा!!
-