जाना है तुझे पराये घर,
ये बचपन से सिखाया जाता है....
दिल का टुकड़ा बोल कर,
उसे प्यार से बड़ा किया जाता है....
क्यूँ एक बेटी को नाजो से पाल कर,
फिर खुद से दूर किया जाता है..?
थोड़ा थोड़ा करके उसमे,
जिम्मेदारियो का पौधा बोया जाता है....
एक नहीं दो घरों की इज्जत है,
उसे हमेशा से यही बताया जाता है....
क्यूँ एक बेटी से फिर,
उसका अपना ही घर छीन लिया जाता है...?
यूँ तो उसे माँ लक्ष्मी बोल कर,
उसका स्वागत किया जाता है....
कन्या का दर्जा दे कर,
उसे सौ ब्राह्मणों से भी ऊपर रखा जाता है....
क्यूँ एक बेटी को फिर,
झुक कर सब सहने को मजबूर किया जाता है...?
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