मोरे जी को पी की आस है,
सब सुधी बुधी मैं भुलीं गई हूं,
उस श्याम के चरनन की धुली,
मैं सिर पर अपने लगाय रही हूं,
मैं मीरा बड़ी अभागन निकली,
जो अपने मोहन के दरस को तरस रही हूं,
वो धनश्याम तो हो गया श्यामा का,
और मैं मीरा उस कृष्ण के विराह में तड़प रही हूं.
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