समृद्धि तिवारी🦋   (_my_imagination_08)
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ॐ नमः शिवाय ❤️🌍
Joined 15 September 2019


ॐ नमः शिवाय ❤️🌍
Joined 15 September 2019

एक दफा तुम्हारे सीने से लग के बहुत रोना चाहती हूं,
जाने क्यों इन खामोशियों में एक अजीब सी उलझन है।
तुम्हें गले से लगा के बहुत कुछ बताना चाहती हूं,
अब इन सन्नाटो में भी एक अजीब सी घुटन होने लगी है ,
कोई सुन न सके मुझे ऐसे चीखना चिल्लाना चाहती हूं।।

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🙏🏻.

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मैं रूबरू तो थी हर बात से और,
उन बातों की हर तकलीफ से...
फिर भी न जाने क्यों बार बार
एक उम्मीद कर ही लेती थीं
खुद से एक कोशिश करके
सब ठीक होने का खयाल लेकर...
सब कुछ अपने मुताबिक़ पा लेना
इतना आसान तो नही जितना सोचा जाएं
पर शायद इतना मुश्किल भी तो नही
कि न उम्मीदियो में सब खो दिया जाएं....
यकीनन सिर्फ़ ख़्वाब देखने से ही
सारी ख्वाइशये पूरी तो नहीं होती...🌼

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मंजिल के हर रास्ते, हर कदम पे,
खुद को आजमाना बहुत जरूरी है।
गर टूट गए तो कोई मसला नहीं,
गिर के संभल जाना बहुत ज़रूरी हैं।।

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ये टूटना ,बिखरना ,उलझना तड़पना,
मुझसे नहीं होगा ।
ये शिद्दत से प्यार करना समझना, जताना,
मुझसे नहीं होगा।
ये रिश्तों की डोर को पकड़ना ,संभालना,
मुझसे नहीं होगा।
ये वादे, ये कसमें हर बात पे यूं हक जताना,
मुझसे नहीं होगा ।
ये फ़िर से यकीन ,चाहत ,आदत, इबादत ,
मुझसे नहीं होगा ।
सुनो, बड़ी मुश्किल से मिली हूं मैं खुद से,
ये जज़्बात ,एहसास ,फिक्र की बातें अब
मुझसे नहीं होगा !!!!!!!!!!!!!!♥️

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और कितना गिरेंगे हम???

क्या लिखूं मैं, पर लिख रही हूँ!
इस तरह इंसानियत, हैवानियत कुछ कर रही है,
सोचती हूँ क्यूं मैं भी इंसान जैसी दिख रही हूँ।
क्या लिखूं मैं, पर लिख रही हूँ!
ये दौर तूफानों के आए बहुत हैं,और आते रहेंगे,
मौत अन्तिम सत्य है, ये पाठ बार -बार दोहराते रहेंगे ,
आज ऐसी कौन सी लाचारी आवाम को दिख रही हैं।
क्या लिखूं मैं,पर लिख रही हूँ!
आज जब इंसान का है ,फर्ज कि खुद को बचा ले,
खुद बचे या दूर रहकर, दूरियाँ दिल की मिटा ले।
मौत तो है नियत इक दिन, आना है ,और आ जाएगी ,
प्रश्न यह है ,आएगी तो, किस -किस को ले जाएगी।
सोचती हूँ क्यूं मै भी इंसान जैसी दिख रहीं हूँ।
क्या लिखूं मैं,पर लिख रही हूँ!!!!!!!!

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कमी तो कुछ भी नहीं है
फिर भी ना जाने क्यूं
ये आंखें नम सी है,
पास तो सब है मेरे
फिर भी एक अजीब सी बेचैनी हैं।
लाख कोशिश करती हूं
खुद को समझाने की ,
जो बीत चुका उसे भुलाने की।
फिर भी ना जाने क्यूं
कुछ चीज़े चाह के भी नहीं कर पा रही।
क्या हुआ है मुझे ,ये समझ से परे है
एक अजीब सा शोर है दिल में,
ऐसा लगता है मानो
एक उलझी सी ज़िन्दगी की उलझन बन गई हूं......
मन करता है जोर से चिल्लाने का चीखने का,
दिल करता है जी भर के रोने का
सारी बाते कह देने का
सारे गम निकल जाए बस दिल से
जी करता है खो जाऊं मैं कहीं ऐसे
जहा कोई मुझे पा ना सके फिर से.......!!

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सुनो,
टूट गई हूं मै तुम्हारी बहुत सी बातों से,
बिखर सी गई हूं मै अपने ही हालातों से।

जब भरोसा किया था तो ये इल्ज़ाम क्यूं,
सब जानकर भी इतने अनजान क्यूं।

ये सब कह के तुमने तो आसान कर दिया ।
प्यार नहीं जैसे कोई एहसान कर दिया।।

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वक्त के साथ बदल जाते हैं लोग..
बातें तो बड़ी -बड़ी कर लेते है सब,
यहां तो वादों से भी मुकर जाते है लोग।
अब यकीन भी हो तो कैसे किसी पे ,
यहां तो मतलब का रिश्ता निभाते है लोग।

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हम आज भी वैसे ही हैं,
जैसे कभी हुआ करते थे।
हां ,बस तेरे जाने के बाद,
किसी पे भी यकीन करना।
ज़रा मुश्किल सा हो गया है।।

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