और कितना गिरेंगे हम???
क्या लिखूं मैं, पर लिख रही हूँ!
इस तरह इंसानियत, हैवानियत कुछ कर रही है,
सोचती हूँ क्यूं मैं भी इंसान जैसी दिख रही हूँ।
क्या लिखूं मैं, पर लिख रही हूँ!
ये दौर तूफानों के आए बहुत हैं,और आते रहेंगे,
मौत अन्तिम सत्य है, ये पाठ बार -बार दोहराते रहेंगे ,
आज ऐसी कौन सी लाचारी आवाम को दिख रही हैं।
क्या लिखूं मैं,पर लिख रही हूँ!
आज जब इंसान का है ,फर्ज कि खुद को बचा ले,
खुद बचे या दूर रहकर, दूरियाँ दिल की मिटा ले।
मौत तो है नियत इक दिन, आना है ,और आ जाएगी ,
प्रश्न यह है ,आएगी तो, किस -किस को ले जाएगी।
सोचती हूँ क्यूं मै भी इंसान जैसी दिख रहीं हूँ।
क्या लिखूं मैं,पर लिख रही हूँ!!!!!!!!
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