दिल को तीर की तरह छेद जो गई थी तुम्हारी सोहबत में जब सांस लेना बोझ लगने लगा था तब भी तुम्हारे लिए ज़रा सी बात थी वो जब अपनी किस्मत लिखने के लिए भी तुम्हारी इजाज़त लेनी पड़ रही थी अपनी ख़वाहिशें जब तुम्हारे पास गिरवी छोड़ आई थी ताकि बचा सकूं अपने वजूद के मिटते निशान ये सदियों से दोहराया गया एक वाकया था मेरी ज़िंदगी को सामाजिक बेड़ियों में जकड़ा हुआ मैंने पाया था मेरे हालात, सवालात भी किसी और के मोहताज थे लेकिन तुम्हारे लिए..... सिर्फ ज़रा सी बात थी वो..... (Just words)
आँखे नम तो मेरी भी हैं, दर्द उतना ही मुझे भी है, बीते पल भी याद हैं और तुम्हारी बेपरवाही भी, बेशक बढ़ गये हैं आगे हम , पर आज भी मेरी यादों का आँगन तुम्हारे ही नाम से रौशन होता है ।