Shubhasmita sahoo   (" Shubha "✍)
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Joined 6 April 2020


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Joined 6 April 2020
19 MAY 2022 AT 23:01

भीतर बैठा है कहाँ एक बच्चा
जो चिल्लाता , रोता ।
किसी का साथ पाने के लिये बिलबिलात ।
खुद की नादानी पर गुस्सा होता ।
रात के अंधरे में , देख सब चुप, अकेला तकिआ गिला करता है ।

सुबहा के साथ हो जाता वो प्रौढ़ ।
अरो के परेशानी का हल बताता ।
जीवन को हँस कर झेलता ।
मानो लाल चादर पर लगा खुन का दाग ।
आसूँ के छीटें छिपे रहते प्यारे से चेहरे के पीछे ।

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11 MAY 2022 AT 22:39

{ भावनाओं को छिपाए ,अस्तित्व मिटाए, एक उम्मीद लिये किसी के आने की आश में जिन्दा रहना खुद की व्यक्तित्व का हनन है }
🍁

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29 APR 2022 AT 14:31

अब तो exam भी खतम
याद आने लगो तो क्या किया जाए ?

खुद में उलझी हुई मैं
उलझना छोड़ दूँ तो क्या किया जाए ?

कविओं को पढ़ने में व्यस्त मैं
तुम्हें पढ़ाने की कोशिश करू तो क्या किया जाए ?

पन्नों को उलटने में रुचि है मेरी
अतीत को उलट कर देखूँ तो क्या किया जाए ?


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30 MAR 2022 AT 22:53

दिन से रात तक पढ़ाई में व्यस्त मैं ;
कुछ पल खुद को खुद में तलाश कर
पाती हूँ कुछ कमियां कुछ सुनापन ।
मन में आता है एक प्रश्न कि -
जिम्मेदार कौन है मैं या तुम ?
उत्तर में किताबों से घिरी हुई मैं !
फिर से उलझ जाती हूँ *
किसी कवि के जीवन संघर्ष में ,
प्रतिबिम्ब देख खुद की ।।

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4 FEB 2022 AT 22:36

< प्रतीक्षा >
● जो मेरी सहचरी है ;
जब से मेरे मन रुपी आकाश में तुम्हारा चेहरा सूरज के समान उदीत हुआ है । जब से खुद में किसी और की उपस्थिति अनुभव किया है । जब से मेरे यादों में तुमको मुझ से अभिन्न घोषित किया है ।

राहगीर सा जीवन यात्रा में ठिकाना खोजना न जाने कब समाप्त होगा ???
या प्रतिक्षा चीर सहचरी बन जाएगी ~~~~

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20 JAN 2022 AT 23:37

[ अब मैंने अनसुना कर दिया ]
अब उसने दिल का हाल सुनाया और मैंने अनसुना कर दिया ■

बहुत दिनों के बाद मेरे यादों की गलियों में जाना हुआ ।
फिर मुशाफिर सा भटक कर हकीक़त में आना हुआ ।।
पहली बार वेबफा की आँखों में सचाई दिखी मुझें ।
लाखों बुराईयों के बीच एक अच्छाई दिखी मुझें ।।
बहुत पुराने ज़ख्मो पर मरहम लगाने आया वो ।
भरे हुए ज़ख्मो को ताजा कर अनजान बन के गया वो ।।
उनके आँखों में मोहब्बत देख कर मैंने अनदेखा कर दिया

< अब उसने दिल का हाल सुनाया और मैंने अनसुना कर दिया । >
{ मैं अधूरी , तुम अधूरे , ये कविता भी अधुरी ••••••


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6 FEB 2021 AT 20:23

पहली कविता सी हसरत लिए
दिल में उमंग छिपाय रखते हो क्यु ?
बाहर की अवाज से परेशान
अन्दर से खामोश रहते हो क्यु ?
समंदर सा गुस्सा मन में भर के
चलूँ भर मुस्कुराह दिखते हो क्यु ?
ख्यहिस दिल में जगा कर
दीपशिखा को बुझते हो क्यु ?
सब कूछ जेहन में रखके भी
अनजानों सा वर्ताव करते हो क्यु ?
झुठे नहीं हो तुम , मुझे मालुम है
फिर भी इस कदर कोशिश करते हो क्यु ?

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15 DEC 2020 AT 21:36

कूछ तो है जो इसकदर
हमें उलझा रखा है ।🤔
उन चिड़ियों की घोसले सा ,
जहाँ कैद होना भी सुकून से कम नहीं ।😉
उस पतंग की लालसा सा ,
जो आग में खुद को समर्पित कर दे ।😔
बीमार बच्चों की हसीं सा ,
जो रोते हुए को भी उम्मिद दे जाए ।😚
सूरज की रौशन सा ,
जो कोमल कमल में जान ला दे ।🍁
चांद की छलावे सा ,
जो मन में ले आए पिया की छबी ।🙈
उलझ कर भी निकलना आसान नहीं
न दिल को मंजूर है ये नादानी ,
गुड़िया सा अब भी करता है ये शैतानी ।😜
कुछ तो है :::
हाँ कुछ तो , ।।।🤔🤔



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22 SEP 2020 AT 0:56

मैं क्या वही हूँ ?
जो तुमसे मिलने के पहलें थी
या कोई ओर जिससे मैं खुद अनजान हुँ ।
मेरा कुछ अस्तित्य अभी भी है
या सब कुछ मेंने तुम पर लुटा दिया ।
हुस्न-ए-महफ़िल अब भी सजाओगे
अब भी क्या मुझ पर प्यार जताओगे
पलटकर देखना एक बार ।।

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14 AUG 2020 AT 18:25

देश पुकार रहा है "बापू"
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