Shubham Shukla   (आवारा)
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a poet and a musician by profession
Joined 7 June 2017


a poet and a musician by profession
Joined 7 June 2017
10 FEB 2023 AT 11:58

चुनी गई हैं गोलियाँ, बमों का इंतख़ाब है,
तुम्हारे इस जवाब में मेरा चयन ग़ुलाब है ।

बना लो तुम मिसाइलें, चमन सजा रहा हूँ मैं
बिखेरे ख़ुश्बूएँ सदा वो गुल खिला रहा हूँ मैं
फ़साद की निशा का बस ग़ुलाब ही जवाब है
ये सुर्ख़ आफ़ताब है, ग़ुलाब इंक़लाब है

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6 FEB 2023 AT 21:04

यूँ अमीरों के अमल को देखती है मुफ़लिसी
इन के दिल में हमशक़ल को देखती है मुफ़लिसी

है पसीना जिन दीवारों में वो सरहद बन गई
बेबसी से एक महल को देखती है मुफ़लिसी

दलदलों से है लबालब बैठना दुशवार है ,
बाग़ में खिलते कमल को देखती है मुफ़लिसी

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20 JAN 2023 AT 16:38

जहाँ मिली बेशुमार शोहरत मैं उस ज़माने में मुबतिला था,
चुका के क़ीमत ख़ुद की जाना, ये किस को पाने में मुबतिला था ।

किसी को ग़र तुम भुलाना चाहो तो उसको यकसर भुला भी देना,
वो मुझ में गहरा और उतरा जब मैं उसे भुलाने में मुबतिला था ।

जो इश्क़ में आज़माए तुमको वो कैसे जाने के इश्क़ क्या है,
मैं इश्क़ में मुबतिला रहा और वो आज़माने में मुबतिला था ।

ये शेर कह कर उतर रहे थे उधर मुक़र्रर का शोर बरपा,
नज़र न आई वो फिर वहाँ मैं ग़ज़ल सुनाने में मुबतिला था ।

जुटा रहा था वो रोटी माँ के लिए वो भूखी तड़प रही थी ,
दम अपना तोड़ा जब उसकी माँ ने वो कारख़ाने में मुबतिला था ।

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8 DEC 2022 AT 12:55

एक ख़मोशी है जंगल पे तारी बहुत
गाँव में आगाए हैं शिकारी बहुत

जिस सड़क पे मकाँ सब्सिडी में बिके
उस सड़क पे बसर थे भिखारी बहुत

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31 MAY 2022 AT 19:30


उठो तुम्हें पुकारते हैं ज़िंदगी के रास्ते,
उठो अभी हैं मुंतज़िर हर ख़ुशी के रास्ते

होंठ की लकीर को मोड़ दो हँसी करो,
कदम रखो की ज़र्द है सब्ज़ ये ज़मीं करो

बाँध लो अतीत को गिरह में अपनी ज़ुल्फ़ की
बक़्श दो नज़र जहाँ को, खिड़कियाँ हैं ख़ुल्द की

ग़म के जाल तोड़ दो , ग़मज़दा नहीं हो तुम ,
ख़फ़ा कोई हो तो हो, सुनो ख़ुदा नहीं हो तुम,

कश्मकश बने जो शक़्स ख़फ़ा करो दफ़ा करो
ख़ुद पे तुम रहम करो, ख़ुद से तुम वफ़ा करो

उठो भला रुके हैं कब किसी नदी के रास्ते
उठो अभी हैं मुंतज़िर हर ख़ुशी के रास्ते ।

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17 MAY 2022 AT 22:20


उठो तुम्हें पुकारते हैं ज़िंदगी के रास्ते,
उठो अभी हैं मुंतज़िर हर ख़ुशी के रास्ते

होंठ की लकीर को मोड़ दो हँसी करो,
कदम रखो की ज़र्द है सब्ज़ ये ज़मीं करो

बाँध लो अतीत को गिरह में अपनी ज़ुल्फ़ की
बक़्श दो नज़र जहाँ को, खिड़कियाँ हैं ख़ुल्द की

ग़म के जाल तोड़ दो , ग़मज़दा नहीं हो तुम ,
ख़फ़ा कोई हो तो हो, सुनो ख़ुदा नहीं हो तुम,

कश्मकश बने जो शक़्स ख़फ़ा करो दफ़ा करो
ख़ुद पे तुम रहम करो, ख़ुद से तुम वफ़ा करो

उठो भला रुके हैं कब किसी नदी के रास्ते
उठो अभी हैं मुंतज़िर हर ख़ुशी के रास्ते ।

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10 MAY 2022 AT 10:45

शब्दों का ख़यालों को छोड़ जाना किसी प्रेमी के यक-लख़्त छोड़ जाने से ज़्यादा दुःखद है ।

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21 FEB 2022 AT 20:19

फ़रवरी की सर्दियों को धूप का टुकड़ा मिला,
जैसे काली रात को एक महरू मुखड़ा मिला


गुमशुदा मुझसे था मैं ही , तू मिला तो ये लगा
कितने अरसे बाद मुझको यार वो बिछड़ा मिला

तू है बस मंज़र सकूँ का तू उम्मीद ए अम्न है
तुझसे पहले इस जहाँ में हर तरफ़ झगड़ा मिला

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3 FEB 2022 AT 20:55


है जवानी का तक़ाज़ा मिल रही हैं तल्खियाँ
दर्द मेरे हंस रहे हैं खिल रही हैं तल्खियाँ

तल्खियों ने ही थे ढाए दिल पे मेरे ज़ख़्म अब
दिल के ज़ख़्मों की दरारें सिल रही हैं तल्खियाँ

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29 DEC 2021 AT 11:45



सबने समझा लम्हा मुझको ,
तूने जाना दौर हूँ तारा ।

मैं अंदर से कुछ और हूँ तारा ।

कितनी नदियाँ ठहरी मुझमें,
कितने दरिया मुझमें बहते,
मुझको भी ये कहाँ ख़बर थी ,
इतने चेहरे मुझमें रहते ।

इन चेहरों का भेद पढ़ा है ,
तारा तूने वेद पढ़ा है ,

खामोशी की चादर ओढ़े,
चीख़ उगलता शोर हूँ तारा ।

मैं अंदर से कुछ और हूँ तारा ।

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