Shreya Mishra 'Sakhi'   (श्रेया मिश्रा 'सखी')
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Joined 18 May 2018


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Joined 18 May 2018
13 JUL 2023 AT 16:25

राधे राधे सभी को😊

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1 JUN 2021 AT 18:12

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15 MAY 2021 AT 14:48

मन चंचल नादान मन गढ़े कितनी ही कल्पना।
पर सत्यता से परे अक्सर रहे मन की कल्पना।

चाहता है मेरा भी मन वो आएँ एक बार घर,
पूरी हो जाती मेरे मन की अधूरी-सी कल्पना।

आते ही उनके मैं राह पुष्प से सजाऊँगी,
मयूर सम नृत्य करेगी मेरी कोरी कल्पना।

अनेक पकवान बनाकर उनको खिलाऊँगी,
सुनूँगी मीठी बंसी उनसे सच होगी कल्पना।

उनको भजनों से रिझाऊँगी, गीत सुनाऊँगी,
'सखी' हरि से मिलूँगी होगी पूरी मेरी कल्पना।

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1 APR 2021 AT 18:43

सजल नैनों से निहारूँ मैं उसको बारम्बार।
मनोहारी मनमोहन मतवारा मोहक शृंगार।
धीरे-धीरे छूट रही मुझसे अब दुनिया सारी,
साँवरा सलोना श्याम ही 'सखी' का संसार।

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27 FEB 2021 AT 16:52

तुम आओगे घर मेरे यार कब तक।
हम करेंगे तुम्हारा इंतज़ार कब तक।

आँखें नम हैं कि आहट न होती कोई,
आखिर सूना रहेगा घर-द्वार कब तक।

खिलेंगे चमन में गुल नित नये,
होगी बागों में फिर बहार कब तक।

कैसी छाई है खुमारी तेरे नाम की,
दिल ये मेरा रहेगा बीमार कब तक।

'सखी' गोविन्द मेरे आते ही होंगे,
करेंगे वो रूखा व्यवहार कब तक।

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20 JAN 2021 AT 12:16

माना प्यार है मगर इकरार थोड़ी है।
ज़िक्र तो है लेकिन इज़हार थोड़ी है।

यारों का है खूब मेला तो क्या,
किसी को हमारी अफ़्कार थोड़ी है।

पल भर में बदल दे आब-ए-किस्मत,
यहाँ कोई परवरदिगार थोड़ी है।

हम भला क्यों बहायेंगे आँसू
आँखे हैं हमारी, आबशार थोड़ी है।

'सखी' तो तुमको ही पुकारती कान्हा,
दुनिया से हमें कोई सरोकार थोड़ी है।

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19 JAN 2021 AT 17:55

मन बावरा मानत नाही।
स्नेहिल उर जानत माही।
प्रेमवेणु वा गिरिधर की,
नेह को घुँघरू बाजत काही।

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12 JAN 2021 AT 11:52

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30 DEC 2020 AT 20:42

सुनो साँवरे, सामने आओ तो सही।
प्यारे, दर्शन अपना दिखाओ तो सही।

गोविन्द, गोपाल, गिरिधर गाते सदा,
कभी बंसी अपनी सुनाओ तो सही।

दर्द है दुनिया दवा हो तुम,
हे बनवारी! वेदना मिटाओ तो सही।

कृष्ण-कन्हाई, करुणा-कृपा के सागर,
प्यारे, थोड़ी रहमत बरसाओ तो सही।

'सखी' निहारती छवि तेरी, ओ साँवरे!
कभी पास अपने बुलाओ तो सही।

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18 NOV 2020 AT 19:02

गिरिधर नागर मोहन दो अब दर्शन श्याम हमें तुम जी।
मदन मनोहर हे मुरलीधर! पार करो भव से तुम जी।
प्रभु हरि हे हरि! हे मधुसूदन! कष्ट हरो सुख दो तुम जी।
नटवर नंदकिशोर हमें निज सेवक ही रख लो तुम जी॥

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