राखी
हाथ अपने तू मेंहदी-महावर सजा,
घर का मौसम भी अपने गुलाबी सजा,
आ रहे भाई, भगिनि तेरे द्वार पर,
आज उनकी कलाई पे राखी सजा꫰
भाल रोली से,अक्षत से उनका सजा,
घृत के दीपक से अब आरती तू सजा,
चल रही है पवन,आ रही है महक,
उठ रसोई में थाली में मीठा सजा꫰
घर की देहरी पे सुंदर रंगोली सजा,
तन पे अपने रंगीली चुनरिया सजा,
अपनी रक्षा का भईया से वर आज ले,
झूम के आँगन में अपने सपने सजा꫰
वो तो लाये हैं पायल,चल पैर में सजा,
गीत राखी के अपने लबों पर सजा,
घूम जा-झूम जा बन के सावन छटा,
जैसे द्रौपदी के साथ काह्ना सजा꫰
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