Shazia Malik   (shazia malik✍️)
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Joined 20 July 2018


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Joined 20 July 2018
13 JUN 2022 AT 22:15

हक़ीक़त में लिखी होती गर, क़िस्मत की लकीरें,
ढूँढते हुए हम आज यूँ,मीलों दूर ना निकल आते!

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13 JUN 2022 AT 22:08

पलकों पर ठहरे सरिश्क को, तुमसे इश्क़ है इस क़दर,
टूट कर बिखर जाती हूँ, पर ये कभी नम नहीं पड़ते !
तुमने कहा था....... कि, कभी रोना नहीं मेरी कसम है,
मेरे ये नैना देखो, कभी भी तुमसे बेवफाई नहीं करते !

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13 JUN 2022 AT 15:25

कुछ बात ऐसी हुई, कि उनके पास नहीं हूँ,
वो मिलने तो आते रहते हैं, पर साथ नहीं हूँ,

सुबह आँख खुलते ही, हम बात कर लेते हैं,
दिन भर क्या करना है, सब जान भी लेते हैं,
हर रोज़ वक़्त के हिसाब से सब होता रहता है,
फ़र्क़ बस इतना है, जब वो घर वापस आते हैं,
मैं उनकी वो सुक़ून भरी, सुनहरी सांझ नहीं हूँ!

वो आते हैं...मिलते हैं...बात भी करते हैं ख़ूब,
अपनी मौजूदगी में, मज़ाक भी करते हैं ख़ूब,
पर जब भी वो बोलते हैं, घर कब चलोगी...?
मैं उदासी से...., पलकें झुका लेती हूँ उस पल,
क्या कहूँ? कुछ बेबस हूँ,उनका जवाब नहीं हूँ!

वो मेरे हाथों पर अपना लम्स देते हुए कहते हैं,
तुम बस अपना ख़्याल रखो, सब ठीक होगा..!
कुछ दिन की तकलीफें बेशक हो रहीं है ज़रूर,
पर नतीजा, दोनों की ज़िन्दगी का तोहफा होगा!
हाँ,बेशक मैं सुबह से सांझ तक बिस्तर पर ही हूँ,
कौन कहता है,उनकी ख्वाहिशों पर क़ुर्बान नहीं हूँ!

वो इस क़दर उम्मीदें भर देते हैं हर पल मेरे अंदर,
मुझे सोचना भी नहीं कुछ, नहीं..मैं बीमार नहीं हूँ!

Shazia malik🙂


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18 MAY 2022 AT 14:20

दिल की सच्ची,मेरी सीरत इन निगाहों में उतर आती थी,
बिन बोले सदा लोगों को, मन की बात समझ आती थी!
वो बात अलग है कि, चिलमन के पीछे छिपाया बहुत है,
जैसा लोग देखना चाहते थे मुझे, वैसा दिखाया बहुत है!
मैं कल भी दूसरों की ख़ुशी में, खुश रह लिया करती थी,
मैं आज भी दूसरों की ख़ुशी की ख़ातिर,ख़ुद को भूली हूँ!
बस मन में ये सोचकर, कि वापस कभी कुछ ना मिलेगा,
हर दिन चुभते काँटों से वाबस्ता, सब्र के झूले में झूली हूँ!
आँसू पलकों के सहारे, बरसना चाहते हैं आज शिद्दत से,
पर दिल के दरिया में,आँसुओं को पीने का हुनर रखती हूँ!
जब दर्द हद से गुज़र जाता है, तो ये आँसू बह भी जाते हैं,
छलकते आँसुओं की ज़ुबानी, बहुत कुछ कह भी जाते हैं!
बस वो बात अलग है, मुस्कुराहट सब देख लिया करते थे,
आँख से आँसू निकले तो, देखकर भी नज़रअंदाज़ किया!
वो लोग जो कहा करते थे, ये तो हमेशा चहकती रहती है,
ज़ख्मी परिंदे सा देखकर भी,मुस्कुराकर वार पे वार किया!

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17 MAY 2022 AT 23:01

टूट कर बिखरा है हर दिन, रात आँसुओं में बीती है,
जो मुस्कुराती रहती थी हर सू, आज उदास जीती है!
बस एक वजह है कि मेरा ख्वाँह, थाम लेता है मुझे ,
उसके होने से वो,नाउम्मीदी को भी उम्मीद से सीती है!

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16 JAN 2022 AT 20:27

सर्द हवाएँ चल रही हैं बाहर,
बड़ा ही बेईमान मौसम है!
जहाँ भी हो, आ जाओ पास,
तेरी ही कमी,बस मेरे सनम है!

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16 JAN 2022 AT 20:18

मुद्दतों बाद चखा ज़ायका, उनकी सोहबत का,
नहीं रखना है मुझे अब तो, दायरा मोहब्बत का!

कभी नमकीन,कभी मीठी, तो कभी खट्टी सी है,
उनकी मोहब्बत में सदा, नियामत बरसती सी है!

वो मेरे आस पास रहते हैं,तो बहुत ख़ुश रहती हूँ,
बुलबुल सी उनकी बाहों में, ख़ूब मैं चहकती हूँ!

ख़ुदा का शुक्र है, जो उनका मुझे साथ मिला है,
दायरों से फ़ारिग,मोहब्बत का इख़्तियार मिला है!

वो अभी भी पास बैठे थे मेरे, सीने से लगाकर,
मैं बीमार हूँ,तो मन बदल रहे थे,वो मुझे हँसाकर!

हर दायरे को तोड़कर, मुझे तुमसे प्यार करना है,
नन्हा सा अशरफ़ देकर, तुम्हें मुकम्मल करना है!

बेपनाह इश्क़ है तुमसे, तुम में ये जान बसती है,
तेरी मोहब्बत की चमक, इन निगाहों में दिखती है!

अशरफ़ तुम मिल गए, तो अब कोई जुस्तुजू नहीं,
तेरे साथ मुझे अपनी, महफूज़ ज़िन्दगी दिखती है!

Shazia Ashraf❤️




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8 DEC 2021 AT 15:20

कभी अपने अस्तित्व को खोज रहीं हूँ, तो कभी मन की शांति को,
समझ नहीं आ रहा कैसे तोड़ूँ, इन उलझे हुए रिश्तों की भ्रांति को!
एक दर्द का सैलाब छुपा रखा है मैंने, अपनी इन निगाहों के पीछे,
मन कोई पढ़ नहीं पाता,सब पढ़ रहें बस,चेहरे पर झूठी कांति को!

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26 NOV 2021 AT 8:15

हर दिन टूट कर बिखरी हूँ, हर रात चुभन में गुज़री है,
बेहतर वक़्त की पज़ीराई में, सब्र की ऊँगली पकड़ी है!

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22 NOV 2021 AT 15:34

हुई है मुझपर जबसे अशरफ़,तेरी चाहत की बारिश,
ज़र्द पड़े एहसासों पर फ़िर से नई कोंपलें आ गई हैं!

मुरझाए रंग, मोहब्बत के सुर्ख़ रंग में तब्दील हो गए,
ख़ुशक़िस्मत हूँ मैं, जो मुझपर तेरी इनायत हो गई है!
Shazia Ashraf❤️

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