स्त्रियां न नाम ढूंढती हैं
न ही काम ,
वे केवल चाहती हैं उन्हें
जो करे उनका सम्मान ,
अन्यथा ,क्यों ही बनती ये शिवरात्रि की कथा ?
क्यों ही कोई राजकुमारी वन - वन करती तपस्या ?
स्त्रियां भले ही होती हैं श्रृंगार की शौकीन
पर स्नेह के श्रृंगार से बढ़कर उनके लिए कुछ नहीं होता।
उनकी चमक प्रेम से है
उनकी खनक भी प्रेम से है ।
जहां शिव हैं -
वहां प्रेम है,
वहां स्त्रियां हैं ।
जहां खुशहाल स्त्रियां हैं -
वहां संपन्नता है ,
सौभाग्य है
और हर्षोल्लास है।
-