ख़त्म कैसे ज़िंदगी करते कि दुनिया देखती
किसके दर पे ख़ुदकुशी करते कि दुनिया देखती
मुफ़लिसी थी और हम थे घर के इकलौते चराग़
वरना ऐसी रौशनी करते कि दुनिया देखती
सर्द महरी आपकी रिश्ते में हाइल हो गई
वरना हम वो आशिक़ी करते कि दुनिया देखती
ख़ाक सहरा की उड़ाते फिर रहे हो तुम कहाँ
शहर में आवारगी करते कि दुनिया देखती...
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