"सोच बदलो, समाज बदलेगा"
सिखाओ अपनी बेटी को ,मत करें किसी का अपमान ,
पर ये भी सिखाना उसे जरूरी है ,उसका खुद का भी आत्मसम्मान |
सिखाओ अपनी बेटी को, परिवार को जोड़े रखना ,
पर जरूरी है उसका खुद को भी ना बिखरने देना |
सिखाओ अपनी बेटी को ,सोच समझ के बोलना और सहना ,
पर यह भी सिखाना जरूरी है ,उसका अपनी बात को भी कहना|
सिखाओ बेटी को ,ससुराल है उसका घर ,है वो वहाँ की इज्जत ,
पर करें कोई अत्याचार, तो मायके का कमरा है उसके लिए हमेशा सुसज्जित |
सिखाओ अपनी बेटी को ,पति होता है जीवन भर के सुख दुख का साथी ,
चलना कदम से कदम मिलाकर उसके, पर ना बनाना कभी उसकी दासी|
अब वक्त है सोच बदलने का, पति भी होता है इंसान ,ना कि परमेश्वर ,
सखा,प्रेमिका,पत्नी बन देना उसका साथ ,पर ना करना पूजा मान उसको ईश्वर |
विदा होती है बेटी मायके से डोली में,ससुराल से अर्थी में ,हो गया है बड़ा पुराना |
बनाओ बेटियों को भी शिक्षित,सबल ,सक्षम अब जरूरी है ,हमें इस नई रीत को अपनाना|
-