खो चुकी हूँ में तुमको,
यादों के बाजार में l
कहीं पुरानी चिट्ठियां जैसे पन्नों में खोयी हैं,
कोई सूखा गुलाब जैसे किताबों में खोया है,
छोटा सा तिनका जैसे किसी रेगिस्तान में l
या फिर आकाश में भटके किसी परिंदे की तरह,
निकला था जो कभी घोंसले की तलाश में,
सोचा था अपना ठिकाना बनाएगा,
किसी डाल की छांव में l
खो चुकी हूँ में तुमको,
अतीत के कुछ लम्हों में,
जिन्हें मैंने कभी अपना माना था,
पर जो मेरे कभी ना थे l
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