मैं अक्सर तन्हाई मे अकेले तुमसे बात करता हूं,
उसी एक पल का इंतजार, मैं रोज दिन-रात करता हूं।।
तू तो पढ़ती है रोजाना दूसरों के नाम की गजलें,
मैं पागल हर नज़्म की तुझसे ही शुरुआत करता हूं।।
मैं अक्सर तन्हाई मे अकेले तुमसे बात करता हूं,
हाल पूछता हूं तेरा अपना हाल बताता रहता हूं,
मैं अपनी मोहब्बत की बातें दीवारों को सुनाता रहता हूं।।
ये सुनती हैं बड़े गौर से मगर कोई सवाल नहीं करती,
ये दीवार बिलकुल तुम सी है मेरा ख्याल नहीं करती।।
मैं दीवाना बेवजह हवाले उसके जज़्बात करता हूं,
मैं अक्सर तन्हाई में अकेले तुमसे बात करता हूं।।
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