Saket Sukhwant Singh   (SAकेत)
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Joined 11 June 2017


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Joined 11 June 2017
19 MAY 2023 AT 3:38

मेरी कलम इस काबिल नहीं,
कविताएं लिख देना उनका हासिल नहीं!
अभी मेरे पन्नों का कोई साहिल नहीं,
मेरी कहानियां इनमें शामिल नहीं !
मेरे हर एक किरदार को मैंने ही मारा है ,
कैसे कहूं के मैं कातिल नहीं ?

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4 FEB 2021 AT 20:31

टूटा , बेबस,बेचारा और तन्हा ...

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4 FEB 2021 AT 20:24

अब लिखना और भी ज़रूरी है ,बस ये ही एक चीज बाकी है हमारे पास उसके पसंद की |😭

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9 NOV 2020 AT 0:37

सिरहाने डायरी के पन्ने रखें हैं इस जुस्तजु में की किसी रोज़ सारी परेशानियां ख़ुद ब खुद उकर जाएंगी !
मनसद है बग़ल में की किसी रोज़ सारे गम उससे लिपट जाएंगे !
चादर भी सलीके से रखी है कि ये सब होगा तो सुकून से सो पाएंगे !
मगर ये कमबख्त हलकी नींद वाले सपने ने एक सवाल कर दिया - "ये जो दर्द, परेशानी और गम तुम्हारे हिस्से में हैं इसके बिना कौन हो तुम"?जिस सुकून की बात करते हो क्या वही हो तुम , बेजान, बेजुबान , बेबस सुकून से ??

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30 OCT 2020 AT 23:53

Hold your pain till it's recognized as "*Sarcasm*"

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19 OCT 2020 AT 2:32

निकलता हुं बाहर जब भी सब नाराज़ नजर क्यों आते हैं ?
अंदर दर्द धोखे का हो जैसे , हर गली, हर मोड़ , चोराहे पे नाराज़गी क्यों नजर आती है ?
कौन देता अंजाम आखरी सांस तलक ये बदगुमान पालने को ?
हंसते है, सबसे बोलते बतियाते भी हैं पर ये पर क्यों रह जाता है ? चेहरे पे मुखौटा पहने को शराफ़त का , या फिर आग बदला लेने की , क्या है ये ?
एक जिस्म कई किरदार , जैसे एक पंत काज चार ?
रूबरू होने को आयने से एक नया किरदार बनाते है क्या पुराने ख़ुद को लोग ऐसे ही भूल जाते हैं ?
हर कोई खफा है तो ये खता कौन करता है ?
हर दिन मरता , मारता है इंसा ख़ुद को इन्हें दफ़न कौन करता ?
ये मैं सही , तुम ग़लत, पर्याय वाची हैं सबके मगर ये तय कौन करता है ?
सबसे सब दुःखी हैं माना ! लेकिन लेकिन इन्हें दुःखी कौन करता हैं मैं , तुम , वो , ये कौन आखिर कौन ??

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14 OCT 2020 AT 0:28

बस कुछ पन्नों की बात है ! कुछ राज की बात बताता हुं !
अंगुर की बेटी से हुई मोहब्बत सोचो मेहमान नवाजी क्या होगी ,
हर घुंट में होगी नशीली शर्बत , हर फूंक से रात जवां होगी |

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8 OCT 2020 AT 1:59

नाम सपेरा ! ही रख लुं क्या साकेत ?
एक अरसा हुआ आस्तीन के सांपों को पालते !

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17 SEP 2020 AT 4:36

Meri har jeet tmhari ho jaye aur haar meri bs meri reh jaye
*Bs itni si hai Aashiqui hmari

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15 SEP 2020 AT 23:19

The words are miserable today ,
Is it just because they trying to describe disguised misogyny ???

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