निकलता हुं बाहर जब भी सब नाराज़ नजर क्यों आते हैं ?
अंदर दर्द धोखे का हो जैसे , हर गली, हर मोड़ , चोराहे पे नाराज़गी क्यों नजर आती है ?
कौन देता अंजाम आखरी सांस तलक ये बदगुमान पालने को ?
हंसते है, सबसे बोलते बतियाते भी हैं पर ये पर क्यों रह जाता है ? चेहरे पे मुखौटा पहने को शराफ़त का , या फिर आग बदला लेने की , क्या है ये ?
एक जिस्म कई किरदार , जैसे एक पंत काज चार ?
रूबरू होने को आयने से एक नया किरदार बनाते है क्या पुराने ख़ुद को लोग ऐसे ही भूल जाते हैं ?
हर कोई खफा है तो ये खता कौन करता है ?
हर दिन मरता , मारता है इंसा ख़ुद को इन्हें दफ़न कौन करता ?
ये मैं सही , तुम ग़लत, पर्याय वाची हैं सबके मगर ये तय कौन करता है ?
सबसे सब दुःखी हैं माना ! लेकिन लेकिन इन्हें दुःखी कौन करता हैं मैं , तुम , वो , ये कौन आखिर कौन ??
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