Saket ranjan Shukla   (Saket Ranjan Shukla)
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Joined 11 March 2019


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Joined 11 March 2019
23 APR AT 9:33

हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं

हर्षोल्लास है चहुं ओर, चहुं ओर फैली खुशहाली है,
पर्वतराज अंजनेरी की तो, आज छटा ही निराली है,
माता अंजनी के हर्ष की सीमा कैसे पार पाएगा कोई,
नवजात मारुति के दर्शन पा, ये सृष्टि भी बलिहारी है,

वानरराज केसरी भी खुशी के मारे फूले नहीं समाते हैं,
पवनदेव भी अपने औरसपुत्र को देखते नहीं अघाते हैं,
स्वयं शिवशंकर लेकर रूद्रावतार, भूमंडल पर पधारे हैं,
मनभावन बालरूप धर कपीश हर किसी को छकाते हैं,

देवगण पुष्पवर्षा करते, गंधर्व उल्लास के गीत गा रहे हैं,
पशु-पंछी कर कोलाहल आनंदित सुर से सुर मिला रहे हैं,
ये पेड़-पौधे आज आह्लादित से होकर, बल खा रहे हैं ऐसे,
मानो अंजनीसुत को क्रीड़ा करने, अपने मध्य बुला रहे हैं,

संकटमोचन हुए अवतरित अब काहे का किसी को हो भय,
कष्ट, चिंताएं सौंप आंजनेय को, बोलो बजरंग बली की जय।

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22 APR AT 11:41

इकतरफ़ा इश्क़

महज़ दोस्ती है या मोहब्बत, जताऊँगा नहीं,
दिल के जज़्बात, मैं ज़ुबान पर लाऊँगा नहीं,
तेरे इकरार की नहीं दरकार मेरी आशिक़ी को,
हसीन एहसास ये तेरे जवाब पर लुटाऊँगा नहीं.!

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17 APR AT 9:32

श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं

आर्यावत हुआ है धन्य, पधारे हैं अवध में रघुराई,
सारी नगरी सजी पुष्पों से, बाजी हर घर है बधाई,
श्रीराम के आगमन मात्र से, मानो तृप्त हुई है धरा,
शंखों की ध्वनि गूँज रही, गूँजे है ढोल और शहनाई,

ये दशों दिशाएँ हैं आतुर, कौशल्यानंदन के दर्शन को,
कैसे धरे संयम कोई, कैसे थामे तीव्र हृदय स्पंदन को,
रघुवीर के कंधे सजने को कोदण्ड भी आकुल है जैसे,
संपूर्ण ब्रह्मांड कर जोड़े खड़ा श्रीरामलला के वंदन को,

सुधबुध खोए, राम में रमे हम, राम में ही शरण पाते हैं,
राम में रमे है सृष्टि सकल, राम नाम से सब तर जाते हैं,
रमणीक न कोई राम सा, राम सा मनोहर न कोई दूजा,
श्रीहरि, आपके बाल्य रामरूप पर सब बलिहारी जाते हैं,

हर्षोल्लास है चहुँ ओर, तारणहार जो मृत्युलोक पधारे हैं,
एक नारा है सबका, हम हैं श्रीराम के और श्रीराम हमारे हैं।

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9 APR AT 11:29

हिन्दू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

नए नए कोंपल फूटे हैं, नई कलियाँ हैं खिली,
पतझड़ को छोड़कर सृष्टि बहारों से जा मिली,

पंछियों की चहचहाहट में भी नएपन का सुर है,
बागों में लौटी है रौनक, कोयल की कूक मधुर है,

आमों की मंजरियाँ, अब फलों का रूप ले रही हैं,
लीचीयाँ भी बागानों से प्रलोभन जैसे हमें दे रही हैं,

तरबूजों और खरबूजों से हाट नए सिरे सज रहा है,
ककड़ियों और खीरों का स्वाद जुबान पे चढ़ रहा है,

नए मौसम का आरंभ है ये, पुरानापन खो सा गया है,
बदलती छटाएँ देखके ये आसमान भी नया हो गया है,

पेड़ों से पतझड़ में बिछड़े पत्ते भी, जन्म नया पा रहे हैं,
शुष्क पड़े बाग एवं वन भी नए से होकर लहलहा रहे हैं,

विक्रम संवत् 2081 में, नवाचार का आरंभ होना तय है,
माँ दुर्गा के शुभागमन से, प्रफुल्लित हम सबका हृदय है,

माता के शुभाशीष से, जो नुतनत्व फिज़ाओं में आज है,
बधाई हो ये हिन्दू नववर्ष, जो नवीनता का ही आगाज़ है।

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5 APR AT 11:23

सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी

कमियों को मेरी, अब उलाहने सरेआम न दे,
तूने भी चुना था मुझे, सिर्फ़ मुझे इल्ज़ाम न दे,

हो रहा हूँ बर्बाद मैं, तेरे बताए रास्ते पर चलकर,
बेचारगी ही दिखे, इस सफ़र को वो आयाम न दे,

माना कि ख़्वाब सजाना, तुझसे ही सीखा है मैंने,
दिल को चुभें जो ताउम्र, उन टुकड़ों का इनाम न दे,

न कुछ आस लगाई तूझसे साथ निभाने के अलावा,
नाराज़गी में मत ले फ़ैसले इस रिश्ते को क़याम न दे,

सौ हार पर, एक जीत तो मेरे के नाम कर, ऐ तक़दीर,
ज़ख्मी रूह को “साकेत" के, भले कभी आराम न दे।

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1 APR AT 9:07

ख़ैर

वहम के सहारे ही सारा रस्ता गुजार गया,
अब तक का सारा सफ़र यूँ ही बेकार गया,
सुना था कि पाकर मंज़िल मिलती है खुशी,
ख़ैर मुझे क्या मैं तो फ़िर एक दफ़ा हार गया.!

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7 MAR AT 13:28

शीर्षक:— क्या ही मिलेगा अब मुझे

बोए हैं सिर्फ़ काँटे तो सींचकर भी क्या ही मिलेगा,
बे-मरहम ज़ख्मों पर खीझकर भी क्या ही मिलेगा,

टूट गए ख़्वाब सारे, जो सजाए जागती निगाहों ने,
आँखें हुईं वीराँ, पलकें मीचकर भी क्या ही मिलेगा,

मेरे ज़रिए मंज़िल पाने वाले भी हाथ छुड़ाकर गए हैं,
लकीरें ही दें दगा तो मुठ्ठी भींचकर भी क्या ही मिलेगा,

मदद की आस अब किसी से नहीं रस्ता भी सुनसान है,
सुननेवाला कोई है नहीं तो चीखकर भी क्या ही मिलेगा,

अब तकदीर ही करती है चुनाव, मेरे सफ़र का “साकेत",
मंज़िल ही जब मेरी नहीं तो जीतकर भी क्या ही मिलेगा।

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26 FEB AT 12:58

हमारी तकलीफ़ अलग है

बिना अश्क़ दिखाए भी हम बेतहाशा रोज रोए हैं,
गीले तकिए के सहारे खाकर दिल पर चोट सोए हैं,
मेरे दर्द से जमाने के दर्द की तुलना न कर, ऐ ज़िंदगी,
मोहब्बत खोने पर टूटते हैं लोग, हमने दोस्त खोए हैं.!

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29 JAN AT 10:30

तेरी आँखें

शर्माती हैं तो कभी नज़रें मिलाती हैं तेरी आँखें,
न जाने कैसे मुझे मुझसे ही चुराती हैं तेरी आँखें,

कुछ याद रह पाता नहीं, होश में दिल आता नहीं,
जादुई से इशारे कर सब कुछ भुलाती हैं तेरी आँखें,

चैन है न सुकून है, न लगता है दिल किसी काम में,
इंतज़ार करा कराकर बेक़रारी बढ़ाती हैं तेरी आँखें,

घायल हूँ, नैनों के तीर दिल जो सीधे रुह में उतर गए,
फ़िर मुस्कुराकर ज़ख्मों को और बढ़ाती हैं तेरी आँखें,

नाम “साकेत" का सुनते ही जो हया से झुक जाती हैं,
लगता है मेरे आँखों से इकरार ही छुपाती हैं तेरी आँखें।

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22 JAN AT 21:31

रामजन्मभूमि पर निर्मित राम मंदिर में रामलला की हार्दिक–हार्दिक शुभकामनाएं

सदियों के कठोर संघर्ष के बाद परिणाम मनचाहा पाया है,
रुधिर धार से सरयू लाल हुई तब ये पावन अवसर आया है,

बलिदान हुए भक्त कई अपने रामलला को न्याय दिलाते हुए,
थक गईं थीं अँखियां कई, प्रभु के दर्शन की आस लगाते हुए,

राम की ही कर्मभूमि आर्यावर्त में, उन्हें कटघरे में आना पड़ा,
अपने जन्मस्थान का प्रमाण उन्हें न्यायालय में दिखाना पड़ा,

रामविरोधी हुए धराशाई और रामभक्तों का उत्साह रंग लाया है,
बलिदानी का प्रतीक भगवा ध्वज फिर समूचे देश में लहराया है,

हुई धरा धन्य, हैं भावुक भक्तजन, रामलला अपने महल पधारे हैं,
देख पा रहें हैं हम ऐसा मनभावन दृश्य, सचमुच धन्य भाग्य हमारे हैं।

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